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राजकुमार ने एक गाथा पढ़ी
"जिस स्त्री के अनुरूप गुण और यौवन वाला पुरुष नहीं, उसके जीने से क्या लाभ? उसे तो मृत समझना चाहिए ।" "
सुन्दरी ने उत्तर दिया
“ पुण्यहीन पुरुष प्राप्त की हुई लक्ष्मी का उपभोग करना नहीं जानता । पराक्रमी पुरुष ही परायी लक्ष्मी का उपभोग कर सकता है" । "
रात्रि के समय गवाक्ष में से चढकर, राजकुमार उसके भवन में पहुँचा और पीछे से चुपचाप आकर उसकी आँखें मींच लीं ।
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सुन्दरी ने कहा
"अरे, क्या तू नहीं जानता कि तू मेरे हृदय को चुराकर ले गया था ? और अब तू मेरी आँखें मींचने के बहाने सचमुच अंधेरा कर रहा है । आज मैं निर्भ्रान्त होकर अपने बाहुपाश को तेरे गले में डाल रही हूँ । या तो अपने इष्ट देव को स्मरण कर, नहीं तो पुरुषार्थ का प्रदर्शन कर" ।
२.
शीलवती महिलाएँ
अनेक ऐसी महिलाओं के भी उल्लेख मिलते हैं जो अपने पति के परदेश जाने पर बड़े साहसपूर्वक अपने शील की रक्षा करने में दत्तचित रहीं ।
शीलवती का पति श्रेष्ठपुत्र अजितसेन जब राजा के साथ परदेश यात्रा पर जाने लगा तो अपनी पत्नी की ओर से उसे बड़ी चिंता हुई । उस समय शीलवती
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इस प्रकार दोनों में प्रेमपूर्ण वार्तालाप होता रहा । प्रातःकाल उठकर राजकुमार अपने स्थान को लौट गया । *
अणुरुवगुणं अणुरुवजोब्वर्णं माणुसं न जस्सत्थि । किं तेण जियतेण पि मानि नवरं मओ एसो ॥ परिभुजिउ न याणइ लच्छि पत्तं पि पुण्णपरिहीणो । -विक्कमरसा हु पुरिसा भुति परेसु लच्छीओ ॥
मम हिययं हरिऊण गओसि रे किं न जाणिओ तं सि ।
सच्च अच्छिनिमीलणमिसेण अंधारयं कुणसि ॥
ता बाहुलयापासं दलामि कंठम्मि अज्ज निब्भतं ।
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सुमरसु य इदेवं पयडस पुरिसत्तणं अहवा ॥
- जिनेश्वरसूरि, कथा कोष प्रकरण; जगदीशचंद्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास पृ० ४३३
देखिए, 'रमणी के रूप' में 'पराई लक्ष्मी का उपभोग' शीर्षक कहानी ।
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