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पोतवणिकों के अन्य आख्यान
व्यापारी लोग धनोपार्जन के लिए जल और स्थल मार्ग से बड़े-बड़े पर्वत, नदी-नाले और भयानक जंगल तथा महानदी और प्रत्यवायबहुल समुद्र-'संचरण करके साहसिक यात्राएँ किया करते थे ।
___ चंपा के जिनपालित और जिनरक्षित नामक वणिकपुत्र ग्यारह बार लवणसमुद्र (हिन्द महासागर ) की यात्रा कर प्रभूत धनसंचय कर चुके थे । लेकिन फिर भी उन्होंने किसी प्रकार अपने पिता की अनुमति प्राप्त कर बारहवीं बार समुद्रयात्रा की।
___ इसी प्रकार समराइच्चकहाँ, नर्मदासुंदरीकों, प्राकृतकथासंग्रह, जिनदत्ताख्यान, सिरिवालकहाँ आदि प्राकृत के अनेक आख्यान ग्रंथों में वणिकपुत्रों और सांयात्रिकों के वर्णन आते हैं जिन्होंने समुद्रमार्ग से यात्रा कर, अपनी जान जोखिम में डाल, प्रचुर धन का संचय किया। व्यापारियों की पत्नियों की शीलरक्षा
पोतवणिकों के परदेश यात्रा करने पर उनकी सहधर्मिणियों को अकेले समय काटना दुष्कर हो जाता। पति की दीर्घकालीन अनुपस्थिति में उनके सतीत्व के विषय में शंका उपस्थित हो जाती । परदेश में गया हुआ पति भी किसी युवती के १. वसुदेवहिंडी, पृ० २५३ २. णायाधम्मकहाओ, कथा ९ । इस कथा की तुलना बौद्धों के वलाहस्स जातक ( १९६)
और दिव्यावदान से की जा सकती है। ३. चौथे भव में धन और धनश्री, तथा छठे भव में धरण और लक्ष्मी की समुद्रयात्रा
का वर्णन है। महेश्वरदत्त ने अपनी पत्नी नर्मदासुंदरी को साथ लेकर धनार्जन के लिए यवनद्वीप प्रस्थान किया और मार्ग में उसके चरित्र पर संदेह हो जाने के कारण उसे वहीं छोड़ दिया । समुदयात्रा के वर्णनप्रसंग में कालिका वायु बहने के कारण जहाज भन्न हो आता है। श्रेष्ठीपुत्र एक तख्ते के सहारे सुवर्णद्वीप पहुँच सोने की ईंटें प्राप्त करता है । जिनदत्त अपनी पत्नी श्रीमती के साथ समुद्रयात्रा करता है । कोई व्यापारी जिमदत्त
की पत्नी को हथियाने के लिए उसे समुद्र में ढकेल देता है । ७. श्रीपाल की समुद्रयात्रा के प्रसंग पर बड़सफर, पवहण, बेडिय, वेगड, सिल्ल (सित=पाल),
आवत (गोल नाव, और बोहित्थ नाम के जलयानों का उल्लेख है।
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