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मरुदेश( मारवाड़ )वासी वक्र, जड, उजड्ड, बहुभोजी, कठिन, पीन और फूले हुए शरीर वाले थे; वे 'अप्पां तुप्पां' शब्दों का प्रयोग करते थे।
गुर्जर देशवासियों का शरीर घो और मक्खन से पुष्ट था, वे धर्मपरायण तथा संधि और विग्रह में निपुण थे; 'णउ रे भल्लउं' शब्दों का वे प्रयोग करते थे ।
लाट देशवासी स्नान के पश्चात् सुगंधित द्रव्यों का आलेपन करते, अपने बाल काढ़ते और अपने शरीर को सजाते; वे 'अम्हं कउं' शब्दों का प्रयोग करते थे ।
मालव देशवासी तनु, श्याम और छोटे कद वाले, क्रोधी, मानी और रौद्र स्वभाव के थे; वे 'भाउय भइणी' और 'तुम्हे' शब्दों का प्रयोग करते थे।
कर्णाटक के व्यापारी उत्कट दर्पवाले, मैथुनप्रिय, रौद्र और पतंग वृत्तिवाले थे; वे 'अडि पांडि मरे' शब्दों का प्रयोग करते थे।
ताजिक के व्यापारी कंचुक से आवृत्त शरीर वाले, मांस में रुचि रखने वाले, तथा मदिरा और मदन में तल्लीन रहते थे; वे 'इसि किसि मिसि' शब्दों का प्रयोग करते थे।
कोशलदेश के वासी सर्व कला संपन्न, मानी, क्रोधप्रिय और कठिन शरीर वाले होते थे; वे 'जल तल ले' शब्दों का प्रयोग करते थे ।
महाराष्ट्र के व्यापारी हृष्ट-पुष्ट, छोटे कद वाले, श्यामल अंग वाले, सहनशील, अभिमानी और कलहप्रिय थे; वे 'दिण्णल्ले गहियल्ले' शब्दों का प्रयोग करते थे।
___आंध्र देशवासी महिलाप्रिय, संग्रामप्रिय, सुन्दर और रौद्र भोजन करने वाले थे; वे अटि पुटि रटि' शब्दों का प्रयोग करते थे ।-कुवलयमाला, पृ० १५२।
ठेठ व्यापारी भाषाओं का वे लोग प्रयोग कर रहे थे। कोई कह रहा था'दे दो, दे दो', 'इससे अधिक सुन्दर हमें चाहिए', 'यह सुन्दर नहीं तो अपना रास्ता देख', 'आओ, पधारो', 'चलो, खरीद के भाव में ही दे देंगे', 'सात गये तीन बचे'-'हिसाब लगाने पर आधा बाकी रहा', 'बीस के आधे दस', 'हम तो पाई-पाई का हिसाब लगाते हैं', 'सौ भार, करोड़, लाख सौ करोड़, पलशत, पल, अर्धपल, कर्ष, मास, रती', 'अरे बड़ा व्यापार होगा', 'ले जाओ, बहुत अच्छा और सस्ता मिल रहा है', 'अरे, यहाँ तो आओ, इसके ऊपर तुम्हें कुछ मासा और दे देंगे', 'अरे, मालको क्यों ढंक लिया, हमें लेना है', 'देखो, अच्छी तरह देख-परख कर जाना', 'यदि माल जरा भी खराब निकला तो ग्यारह करोड़ दूंगा।' -कुवलयमाला पृ० १५३ ।
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