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हुई लक्ष्मी को उद्यमी पुरुष प्राप्त करते हैं। जो कोई कार्य का आरम्भ करके बाद में उसमें शिथिलता दिखाते हैं, खंडित महिला की भाँति लक्ष्मी उनका मान भंग करती है।"
___ तत्पश्चात् व्यापारी रत्नद्वीप की यात्रा के लिए चल पड़े।' व्यापारियों की भाषा और लेनदेन
यहाँ केवल व्यापारियों के देश-देशांतर में परिभ्रमण करने की कथाओं का ही नहीं, उनकी बोलचाल रीति-रिवाज तथा व्यापारी भाषा का भी रोचक वर्णन देखने में आता है।
_ विजया नगरी में अपना-अपना माल बेचने के लिए आये हुए गोल्ल, मध्यदेश, मगध, अन्तर्वेदी, कीर, ढक्क, सिंध, मरु, गुर्जर, लाट, मालव, कर्णाटक, ताजिक, कोशल, महाराष्ट्र और आंध्र के व्यापारियों का उल्लेख आता है, जो अपनीअपनी भाषाओं में वार्तालाप करते हैं।
गोल्लदेश (गोदावरी के आसपास का प्रदेश) के व्यापारी कृष्ण वर्ण, निष्ठुर वचनवाले, बहुत काम-भोगी और निर्लज्ज थे; वे 'अडूडे' का प्रयोग करते थे ।
मध्यदेश के व्यापारी न्याय, नीति, संघि, और विग्रह में पटु, स्वभाव से बहुभाषी थे; वे 'तेरे मेरे आउ' शब्दों का प्रयोग करते थे ।
___ मगध देशवासी पेट निकले हुए, दुर्वर्ण, तथा सुरत क्रीड़ा में तल्लीन रहते थे; वे 'एगे ले' का प्रयोग करते थे।
अन्तर्वेदी (गंगा और यमुना के बीच का प्रदेश) के वासी कपिल रंग के, पिंगल नेत्रवाले, भोजन-पान और गपशप में लगे रहने वाले और मिष्टभाषी थे; वे 'कित्तो कम्मो' शब्दों का प्रयोग करते थे।
कीर ( कुल्लू कांगड़ा) देशवासी ऊंची और मोटी नाकवाले, गेंहुआ रंग के और भारवाही होते थे; वे 'सारि पारि' शब्दों का प्रयोग करते थे ।
ढक्क (पंजाब) देश के वासी दाक्षिण्य, दान, पौरुष, विज्ञान और दयारहित थे; 'एहं तेह' शब्दों का वे प्रयोग करते थे।
सिंधुदेशवासी ललित, मृदुभाषी और संगीतप्रिय थे, अपने देश की ओर उनका मन लगा रहता था; वे 'चउडय' शब्द का प्रयोग करते थे। १. कुवलयमाला, पृ. ६५-६७ । यहां समुद्रयात्रा की तैयारी का वर्णन है । समुद्री तूफान
के वर्णन के लिये देखिये पेरा १३३ पृ. ६८
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