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आया तो द्वारपाल ने अन्दर जाने से उसे रोक दिया। पूछने पर पता लगा कि वह घर रामदेव का है और जब से भानु श्रेष्ठी का पुत्र चारुदत्त कुपूत हो गया
और गणिका के घर रहने लगा, शोक से अभिभूत हो, गृहत्याग कर उसके पिता ने दीक्षा ग्रहण कर ली, और उसकी माँ अपना घर बेचकर अपने भाई के घर रहने चली गई । रामदेव को जब चारुदत्त के आगमन का पता लगा तो उसने कहा कि उस निर्लज्ज को उसके घर में न घुसने देना ! वह अपने मामा के घर पहुँचा जहाँ उसने दरिद्र वेश धारण किये दीन-हीन अवस्था में बैठी हुई अपने माँ के दर्शन किये। माँ अपने बेटे का आलिंगन कर रुदन करने लगी । मलिन वस्त्र धारण किये हुए श्रीविहीन चारुदत्त की पत्नी मित्रवती से भी न रहा गया । इतने दिनों बाद, बिछुडे हुए पति को प्राप्त कर उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। बाजार से तुषकण मंगाकर भोजन तैयार किया गया।
शेष रहे धन के विषय में पूछताछ करने पर माँ ने उत्तर दिया
बेटा ! जमीन में गड़े हुए व्याज पर दिये हुए तथा सगे सम्बन्धियों को दिए हुए धन के विषय में मैं कुछ नहीं जानती । इतना जानती हूँ कि श्रेष्ठी के दीक्षा लेने के बाद दासी और दासों को दिया हुआ धन विनष्ट हो गया, सोलह हिरण्य कोटि तुझ पर खर्च हो गये और हम लोग जैसे-तैसे करके दिन काट रहे हैं ।
चारुदत्त-माँ ! लोग मुझे नालायक समझने लगे हैं, अब मैं यहाँ नहीं रहूँगा। मैं कहीं दूर चला जाऊँगा और धनार्जन करके ही वापिस लौटूंगा । बस तेरा आशीर्वाद चाहिए ।
माँ बेटा ! व्यापार करने में कितना कष्ट होता है, इसकी तुझे खबर नहीं । तू कहाँ रहेगा ? तू हमारे साथ रहे तो हम दोनों तेरा निर्वाह कर सकते हैं।
चारुदत्त-माँ तू ऐसा मत कह । भानुश्रेष्ठी का पुत्र होकर मैं पराश्रित रहूँगा । ऐसा तू विचार छोड़ दे। मुझे जाने की आज्ञा दे ।
चारुदत्त अपने मामा सर्वार्थ के साथ धनोपार्जन के लिए चल पड़ा । दिशासंवाह ग्राम में पहुँचने पर मामा ने कहा कि वहाँ उसके पिता के घर काम १. बृहत्कथाश्लोकसंग्रह में इस प्रसंग पर सानुदास द्वारा प्रक्षपित द्रव्य का चार गुना धन कमाकर लौटने का उल्लेख है
ततः प्रक्षपिताद् द्रव्यादुपादाय चतुर्गुणम् । गृहं मया प्रवेष्टव्यं न प्रवेष्टव्यमन्यथा ॥ १८. १७०, पृ. २३४
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