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________________ ૨૮ दशवैकालिकचूर्णी (३, पृ०१०९) तथा जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के विशेषावश्यकभाष्य (गाथा १५०८) में इस महत्त्वपूर्ण कृति का उल्लेख मिलता है। मलयवती मलयवती के सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं प्राप्त होती । मलयवती का उल्लेख अनंगवती, इन्दुलेखा, चारुमती, बृहत्कथा, माधविका शकुन्तिका, आदि रचनाओं के साथ भोजराज (९९३-१०५१ ई०) के सरस्वतीकण्ठाभरण में मिलता है।' मलयसुंदरी मलयसुन्दरी में महाबल और मलयसुन्दरी की प्रणयकथा का वर्णन है । इस ग्रंथ के कर्ता का नाम अज्ञात है । इसपर आचार्य धर्मचन्द्र (१४ वीं शताब्दी) ने संस्कृत में संक्षिप्त कथा की रचना की है।' वसुदेवचरित या वसुदेवहिण्डी आचार्य हेमचन्द्र के गुरु आचार्य देवचन्द्रकृत शांतिनाथचरित्र के उपोद्घात के उल्लेख पर से पता लगता है कि भद्रबाहुसूरि ने अत्यन्त सरस कथाओं से युक्त सवा लाख श्लोकप्रमाण वसुदेवचरित कथाग्रंथ की रचना की थी, जो आजकल अनुपलब्ध हैं। किन्तु कुछ विद्वानों का कहना है कि उपलब्ध वसुदेवहिंडी में वसुदेव के भ्रमण (हिण्डी) की कथा है अतएव. वसुदेवहिंडी और वसुदेवचरित दोनों को एक ही मानना चाहिए। गुणाढ्य की बड्डकहा (बहत्कथा) का अनुकरण करने वाला यह कथा-ग्रन्थ दो खण्डों में उपलब्ध है । प्रथम खण्ड के प्रणेता संघदासाणि वाचक ने वसुदेवहिण्डी को गुरु परंपरागत मानकर उसका वसुदेवचरित के रूप में उल्लेख किया है। दूसरा खण्ड अप्रकाशित है । इसके रचयिता धर्मसेनगणि महत्तर ने इस खण्ड के आरम्भ में अपनी रचना को आचार्य परंपरागत स्वीकार कर, लताविज्ञान की उपमा देते हुए इसे धर्म-अर्थ-काम से पुष्पित, आयास के फलभार से नमित, १. प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ०६५९ २. वही, पृ० ४७६ ३. मुनि जिनविजय, वसंत रजत महोत्सव स्मारक ग्रन्थ, पृ० २६० ४. प्रोफेसर भोगीलाल सांडेसरा, वसुदेवहिंडी के गुजराती भाषांतर का उपोद्घात, पृ० ३-४ आत्मानन्द जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, वि० सं० २००३ । ५. वसुदेवहिंडी, पृ० १, २, २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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