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व्याकुल रहती है । इस बीच माधवानिल को उसका कोई शत्रु पाताललोक में भगाकर ले जाता है।
सिंहलराज की कन्या लीलावती राजा सातवाहन का चित्र देखकर उस पर मोहित हो जाती है। अपने माता-पिता की अनुमति प्राप्त कर वह अपने प्रिय की खोज में निकल पड़ती है ।
तीनों विरहणियाँ गोदावरीतट पर मिलती हैं।
इस समय राजा सातवाहन सिंहलराज पर आक्रमण कर देता है। राजा के सेनापति विजयानन्द को पता लगता है कि लीलावती गोदावरी के तट पर अपनी सखियों के साथ समय व्यतीत कर रही है ।
राजकुमारी लीलावती और सातवाहन, कुवलयावली और चित्रांगद, तथा महानुमति और माधवानिल तीनों विवाहसूत्र में बंध जाते हैं।
कृति के अंत में कवि ने अपनी प्रिया को संबोधित करते हुए कहा है
दीहच्छि कहा एसा अणुदियहं जे पति णिसुणंति । ताणं पिय-विरह दुक्खं ण होइ कइया वि तणुअंगी ॥
हे दीर्घाक्षि ! जो प्रतिदिन इस कथा को पढ़ते और सुनते हैं, उन्हें कभी भी प्रिय के विरहजन्य दुःख को अनुभव नहीं करना पड़ता। शृङ्गाररसप्रधान अनुपलब्ध आख्यायिकाएँ
निशीथभाष्य में, लौकिक कामकथाओं में नरवाहणदत्त कथा, लोकोत्तर कामकथाओं में तरंगवती, मलयवती और मगधसेना; आख्यानों में धूर्ताख्यान, शृङ्गारकाव्यों (छलित) में सेतु तथा कथाग्रन्थों में वसुदेवचरित और चेटककथा का उल्लेख है । इन कथाओं के कहने वाले को काथिक कहा गया है। अन्य आख्यायिकाओं में बंधुमती ओर सुलोचना के नाम गिनाये गये हैं। तरंगवतीकथा
. तरंगवती सातवाहनवंशी विद्वान् राजा हाल की विद्वत्सभा के सुप्रतिष्ठित कवि पादलिप्तसूरि की कृति है, यह अनुपलब्ध है । पैशाची भाषा में रचित बृहत्कथा १. ८. ..२३४३; १६. ५२११; तथा बृहत्कल्पभाष्य २२. २५६४।। २. सिद्धसेनाचार्य की तत्त्वार्थसूत्र की बृहद्वृत्ति में निर्दिष्ट, वसन्त रजतमहोत्सवस्मारक ग्रंथ,
मुनि जिनविजयजी का कुवलयमाला नामक लेख पृ० २८४ । ३. कुवलयमाला (६, पृ० ३) में उल्लिखित । ...
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