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भाँति, वनलताओं में कल्पलता की भाँति, अप्सराओं में तिलोत्तमा की भाँति और युवतियों में रति की भाँति कुवलयमाला के रूप-सौन्दर्य से अतिशय आकृष्ट राजकुमार उसके निर्माता प्रजापति के कला-कौशल की भूरि-भूरि प्रशंसा करने के सिवाय और कर ही क्या सकता था ?
आखिर वह भी दिन आ पहुँचा जब कि मुनिवर की भविष्यवाणी के अनुसार, हस्ती को वश में करने वाले और समस्यापूर्ति द्वारा मनोरंजन करने वाले कुवलयचन्द्र के साथ शुभ मुहूर्त में पुरुषद्वेषिणी त्रैकोल्यसुन्दरी कुवलयमाला का विवाह हो गया !
वासगृह में रत्नों से विनिर्मित मुक्ताओं से शोभित धवल सेज बिछायी गयी । कुवलयमाला ने अपनी सखियों का संग छोड़ वासगृह में प्रवेश किया तो सखियाँ ठठोली करने लगीं।
कुवलयमाला--हे प्रिय सखियों ! वनमृगी की भाँति मुझे अकेली छोड़ तुम कहाँ चली ?
सखियाँ -हे सखि ! हमें भी अकेली रहने का यह सौभाग्य प्राप्त हो !
कुवलयमाला_हे प्रिय सखियों ! रोमांच से कम्पित, स्वेदयुक्त ज्वरपीड़ित दशा में मुझे छोड़कर मत जाओ ।
सखियाँ ---तुम्हारा पति स्वयं वैद्य है, वह तुम्हारे ज्वर की चिकित्सा कर देगा।
तत्पश्चात् लज्जा और भय से कांपती हुई उसने कहा-तो लो, मैं भी चली। उसकी साड़ी का पल्ला पकड़ कुवलयचन्द्र ने पूछा-कहाँ ? कुवलयमाला-छोड़ दो मुझे, अपनी सखियों के साथ जा रही हूँ ।
कुवलयचन्द्र--- यदि तू जाना ही चाहती है तो तुझे कौन रोक सकता है । लेकिन तूने जो मेरी चोज चुरा ली है, उसे वापिस देती जा ।
"कौनसी चीज चुरा ली है ?" "मेरा हृदय ।” "कोई गवाह है?" "तुम्हारी सखियाँ ।"
"बुलाओं उन्हें । वे तुम्हें उत्तर देंगी। उन्हें बुलाओं, नहीं तो मुझे छोड़ दो।"
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