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स्वागत करती है । माधवी पुष्पों की मालाके साथ सोने की तश्तरी में उसे पान देती है।
मन में कुमार का स्मरण करती हुई कुसुमावली घर लौटती है । दीर्घ निश्वास छोड़ती हुई वह शैया पर आरूढ़ होती है । कुछ भी उसे अच्छा नहीं लगता । चित्रकर्म और अंगराग उसने त्याग दिये हैं, तथा आहार और अपने भवन तक में उसकी रुचि नहीं रह गयी है। शुक-सारिका को पढ़ाना गृहकलहंस के साथ क्रीड़ा करना, गृहदीर्घिका में स्नान करना, वीणा बजाना और पत्रच्छेद्य को उसने तिलांजली दे दी है।
___ अपनी प्रिय सखी मदनलेखा के साथ उसने बाल-कदलीगृह में प्रवेश किया वहाँ सुंदर सेज तैयार की गयी । मदनलेखा सुन्दर कथालापों से उसका मनोरंजन करती हुई तालवृन्त से पवन करती खड़ी रही। राजकुमारी अपनी प्रिय सखी से मन की बात न छिपा सकी।
__ कुसुमावली ने राजहंस के वियोग में उसके दर्शन के लिए उत्सुक एक राजहंसिनी चित्रित की। उसपर द्विपदीखण्ड' लिखा । मदनलेखा राजहंसनी और प्रियंगुमंजरी के कर्णावतंस ले और नागलता के पत्रयुक्त बहुमूल्य तांबूल लगाकर राजकुमार के समीप गयी।
राजकुमार ने मदनलेखा का स्वागत किया। प्रियंगुमंजरी को कान में धारण किया, तांबूल को ग्रहण किया और प्रसन्नता पूर्वक राजहंसनी को हाथ में ले, उत्सुकता से द्विपदीखण्ड को पढ़ने लगा ।
कुसुमावली के कौशल से उसे आनन्द हुआ । पत्रच्छेद्य कर्तरी से नागलता के पत्र को काट; उसने राजहंसिनी की अवस्था के अनुरूप राजहंस चित्रित कर उसपर निम्नलिखित गाथा लिखी
"मृत्यु के बाद भी अपनी प्रिया के साथ उसका मिलन नहीं होगा, यह विचार कर यह राजहंस अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करता हुआ, किसी तरह अपने प्राणों को धारण कर रहा है !"
बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से सज्जित हो कुसुमावली ने विवाहमंडप में प्रवेश किया और बड़ी धूमधाम के साथ दोनों का विवाह हो गया । १. इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। प्रत्येक में २८ मात्रायें, ६, ४+५ और गुरु होता है। प्रथम
और अंतिम पांच चतुर्मात्राओं में या तो अगण होता है और या सभी वर्ण ह्रस्व होते है २. समराइचकहा २, पृ० ७८-१०१
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