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एणीपुत्र ने उत्तर दिया-कन्या को स्वयम्वर में देने के पश्चात् उस पर पिता का अधिकार नहीं रह जाता । तुम लोगों का कौनसा अपमान हो गया ?
राजाओं ने रुष्ट होकर कहा ये सब झूठ हैं। हमेशा पराक्रम की जय होती है । यदि हम बल का प्रयोग करें तो देखते हैं, यह हमें कैसे वरण नहीं करती ?
तत्पश्चात् दोनों दलों में युद्ध ठन गया ।' कामक्रीडा का वर्णन
कहा जा चुका है कि धर्मकथाओं में शृङ्गार रस का पुट देकर जैन आचार्यों ने अपने कथा-साहित्य को अधिक-से-अधिक रोचक बनाने का प्रयत्न किया । कथानायक को देश-देशान्तरों में परिभ्रमण करा, अनेक सुन्दरियों के साथ उसका विवाह कराया गया । विवाह के पश्चात् कामक्रीड़ा के साधनों को जुटाया गया । नायक और अपनी नायिका को उन्होंने गर्भगृह में प्रवेश कराया जहाँ संभोगसुख का आस्वादन करते हुए, रतिजन्य खेद से श्रांत दोनों सुख की निद्रा का आलौकिक आनन्द लेने लगे । गर्भगृह में पहुँच, नायक वहाँ बिछे हुए सुन्दर कोमल शयनीय पर विश्राम करता और परिचारिका उसके पैरों का अपने कोमल हस्तों और वक्षस्थल का अपने सुकुमार उरोजों द्वारा संवाहन कर उसकी श्रांति दूर करती । जैसे हस्तिनी हस्ती को रतिसुख का आनन्द देती है, वैसे ही परिचारिका नायक को आनन्द प्रदान करती ।
जैन रामायण के अनुसार, राजा दशरथ की पत्नी कैकेयी शयनोपचार (सयणोवयार)-कामक्रीड़ा में विचक्षण थी, इसलिए राजा ने उससे वर मांगने का अनुरोध किया था । १. वही, पृ० २६५-६६ २. वही, पृ. १०२ । बुधस्वामीकृत बृहत्कथाश्लोकसंग्रह (१०.१३९-१५३, पृ० १२३-२४)
में इस प्रसंग पर रतिजन्यसंक्षोभ दूर करने के लिए स्तनोत्पीड़ित नामक संवाहन श्रेष्ठ बताया गया है। परिचारिका श्रेष्ठ स्तनों वाले अपने वक्ष के द्वारा नायक के वक्ष का संवाहन करती है। वसुदेवहिंडी और बृहत्कथाश्लोकसंग्रह दोनों ही रचनाएँ गुणाढ्य की बड्डकहा (आजकल अनुपलब्ध) से प्रभावित जान पड़ती हैं। इस संबन्ध में आगे चलकर चर्चा की
जायगी। ३. इसे पवियारसुख (प्रविचारसुख-संभोगसुख) भी कहा गया है। वसुदेवहिण्डी, पृ. १३३ ४. वसुदेवहिंडी, पृ० २४१
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