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________________ १६ राजा व्याकुल हो जाता और अपनी प्रेमिका की खोज में निकल पड़ता।'पुरुषों का भी यही हाल था । किसी रूपवती युवती के रूप-सौन्दर्य की प्रशंसा से आकृष्ट हुआ राजा रत्नशेखर जोगिनी का रूप धारण कर उससे मिलने के लिए प्रस्थान करता है। कामदेव के मंदिर में प्रेमी और प्रेमिका का मिलन होता है। कभी सर्पदंश अथवा उन्मत्त हस्ती के आक्रमण से किसी युवती की रक्षा करने के उपलक्ष्य में युवती के माता-पिता युवक के बल-पौरुष से प्रभावित हो, अपनी कन्या उसे दे देते । सार्वजनिक नृत्य के अवसर पर सुन्दर नर्तकी के कटाक्षबाण से घायल हुआ कोई छैलछबीला नर्तकी को प्राप्त करने का प्रयत्न करता, अथवा वीणावादन आदि प्रतियोगिताओं में विजयी होकर युवती के पाणिग्रहण का भागी होता । गणिका की कन्याओं से विवाह करना भी नीतिविरुद्ध न समझा जाता । वसुदेवहिंडी में अनेक प्रसंग ऐसे आते हैं जबकि किसी सुन्दर स्त्री के रूपलावण्य से आकृष्ट हो कोई युवक उसे प्राप्त करने की चेष्टा करता है. अथवा किसी साधु-मुनि या नैमित्तिक की भविष्यवाणी के अनुसार दोनों का परिणय हो जाता है। कनकरथ राजा की रानी चन्द्राभा द्वारा पद प्रक्षालन के समय उसके कोमल करस्पर्श से काम पीड़ित हुआ मधु, चन्द्राभा को प्राप्त करने की चेष्टा करने लगा। कनकरथ के साथ उसने मेल जोल बढ़ाया जिससे कनकरथ अपनी रानी के साथ मधु के घर आने जाने लगा। एक दिन मौका पाकर मधु ने चन्द्राभा के आभूषण तैयार कराने के बहाने उसे घर में रोक कनकरथ को बिदा कर दिया। विद्याधरों में तो एक दूसरे की भार्या का अपहरण करने की मानो होड़ लगी रहती थी। विद्याधरों के स्वामी मानसवेग ने कृष्ण के पिता वसुदेव को इसलिए बांध लिया कि उसने उसकी बहन से स्वेच्छानुसार विवाह कर लिया था । और मानसवेग ने वसुदेव की भार्या का अपहरण कर लिया। इसी प्रकार विद्याधरराज १. देखिए पद्मचन्द्रसूरि के अज्ञातनामा शिष्यकृत प्राकृतकथासंग्रह में उल्लिखित सुन्दरीदेवी का आख्यान: जगदीशचन्द्र जैन प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ४७३ । जिनहर्षगणिकृत रयणसेहरीकहा । मिलाइए, मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत की कथा के साथ। प्राकृत साहित्य का इतिहास पृ० ४८३-८५ वसुदेवहिण्डी पृ० १०३ ४. वही पृ०९० ५. वही, पृ० ३०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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