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________________ रोमयुक्त बाहुलता वाली; रक्त हथेली से युक्त, कोमल, अतिरेखा से अबहुल क्रमागत सुजात उङ्गलियों तथा रक्त-ताम्र नखों से युक्त अग्रहस्त वाली; बहुत अधिक प्रलम्बमान नहीं ऐसे रक्त ओठ वाली; सुजात, शुद्ध और सुन्दर दन्तपंक्ति वाली; रक्तकमल के पत्र की भाँति जिह्वा वाली; उत्तम और उन्नत नासिका वाली; अंजुलिप्रमाण, तिर्यक, विस्तृत, नील कमल के पत्र की भाँति नयनों वाली; संगत भृकुटियों वाली; पंचमी के चन्द्र के समान ललाटपट्ट वाली तथा काजल और भ्रमरावलि के समान मृदु, विशद, और सुगन्धि फैलाने वाले, सर्व कुसुमों से सुवासित केशपाश वाली।' अपना परिचय देने के उपरांत सामदत्ता ने निवेदन किया कि जबसे उसने अगड़दत्त को देखा है तभी से वह काम-बाण से घायल हो गयी है, और काम से पीड़ित हो उसकी शरण आई है। अगडदत्त ने उत्तर दिया-सुन्दरी ! मैं यहाँ विद्याध्ययन करने आया हूँ, विनय का उल्लंघन करना मेरे लिए उचित नहीं । सामदत्ता–भर्तृदारक ! आप जानते हैं, कामी कौन होता है ? कुलशील में कोई कलंक उपस्थित न करने वाला व्यक्ति कामी नहीं कहा जाता । धर्मकथाओंमें शृङ्गार ____ इस तरह के अन्य कितने ही प्रेमाख्यान प्राचीन जैन कथाग्रंथों में उल्लिखित हैं जिससे पता लगता है कि जैन ग्रंथकारों ने धर्म-कथाओं में शृङ्गारयुक्त प्रेमाख्यानों का समावेश कर उन्हें अपने पाठकों और श्रोताओं के लिए रुचिकर बनाने की चेष्टा की । वसुदेवहिंडीकार ने लिखा है-नहुष, नल, धुंधुमार, निहस, पुरुरव, मांधाता, राम रावण, जनमेजय, राम, कौरव, पंडुसुत, नरवाहनदत्त आदि लौकिक कामकथाएँ सुनकर लोग एकान्त में काम-कथाओं का रस लेते हैं । इससे सुगति को ले जाने १. वही, पृ. ३५-३७ । नेमिचन्द्र आचार्य की उत्तराध्ययम की वृत्ति में सामदता की जगह कनकमंजरी का नाम है, वह विवाहित थी। उल्लेखनीय है कि वसुदेवहिंडी में अन्यत्र भी नायिकाओं का वर्णन इसी प्रकार की साहित्यिक समासांत पदावली में किया गया-है।. देखिये गंधर्वदत्ता (पृ. १३२ ), बंधुमती ( २८०) केतुमती (३४९), प्रभावती ( ३५१ ) आदि के वर्णन । २. इस प्रसंग पर नेमिचन्द्रीय उत्तराध्ययन वृत्ति ( पृ० ८१-अ) में काम की दस अवस्थाओं का वर्णन है। इसके पूर्व बृहत्कल्पभाष्य ( २२५८- ६१ ) में दस कामवेगों का वर्णन है। ३. वसुदेवहिण्डी, पृ० ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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