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शृङ्गार रस का स्थायी भाव है। शृङ्गार रसों का राजा है और इसी रस को पूर्ण रस माना गया है, बाकी इसकी संपूर्णता की मध्यवर्ती स्थितियाँ बतायी गयी हैं ।
प्राचीन ग्रन्थों में रूप सौन्दर्य, अवस्था, वेशभूषा, दाक्षिण्य, कलाओं की शिक्षा तथा दृष्ट (देखे हुए), श्रुत (सुने हुए) और अनुभूत (अनुभव किये हुए) का परिचय प्रकट करने को काम कथा कहा है।' हरिभद्रसूरि ने इसी का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि जिसमें काम उपादान रूप में हो तथा बीच-बीच में दूती व्यापार, रमणभाव, अनंगलेख, ललित कला और अनुरागपुलकित आदि का वर्णन किया गया हो, उसे कामकथा कहते हैं । अगड़दत्त का कामोपाख्यान
___ अगड़दत्त उज्जैनी के अमोघरथ नाम के सारथी का पुत्र था । पिता का देहान्त हो जाने पर वह कौशाम्बी पहुँचा और अपने पिता के परम मित्र दृढ़प्रहारी नामक आचार्य के पास रहकर शस्त्रविद्या सीखने लगा । यहाँ आचार्य के पड़ोस में रहने वाली सामदत्ता नाम की सुन्दर युवती से उसका परिचय हो गया । वह प्रतिदिन विद्या सीखने में संलग्न अगड़दत्त पर फल, पत्र और पुष्पमाला फेंककर उसका ध्यान आकृष्ट किया करती । एक दिन वह युवती उसी वृक्षवाटिका में आ पहुँची जहाँ अगड़दत्त विद्याभ्यास कर रहा था। रक्त अशोक वृक्ष की शाखा को बायें हाथ से पकडे, अपने सहज उठाये हुए एक पैर को वृक्ष के स्कन्ध पर रखे हुए उस युवती पर अगड़दत्त की नजर पडी । वह कैसी थी ? नवशिरीष के सुन्दर पुष्पके समान, सुवर्ण के कूर्म जैसे चरणों वाली; अत्यन्त विलास के कारण चकित करने वाले कदलीस्तम्भ के समान उरुयुगल वाली; महानदी के तट के स्पर्श के समान सुकुमार जंघा वाली; हंसपंक्ति के समान शब्द करती हुई कटिमेखला वाली; ईषत् रोम पंक्ति वाली; कामरति में वृद्धि करनेवाले, उरुतट की शोभा बढ़ाने वाले संघर्ष के कारण वृद्धि को प्राप्त सज्जन जनों की मित्रता की भाँति बढ़ने वाले तथा परस्पर अन्तर रहित पयोधरों वाली; प्रशस्त लक्षणों से युक्त और १... रूवं वओ य वेसो दक्खत्तं सिक्खियं च विसएसुं । दिल सुयमणुभूयं च संथवो चेव कामकहा
- दशवैकालिक नियुक्ति ३. १९२, पृ० १०९ २. जा उण कामोवायाण विसया वित्त-वपु-व्वय-कला-दक्खिण्णपरिगया, अणुराअ पुलइअपडिवत्तिजोअसारा, दईवावाररमियभावाणुवतणाइ पयत्थसंगया सा कामकहत्ति भण्णइ।
- समराइच्चकहा, पृ. ३
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