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________________ १५६ शरीर में अभ्यंग लगाने की आवश्यकता है। अभ्यंग के अभाव में गंगदत्ता भी परुष हो गयी है । अतः तुम्हें शरीर में तेल का मर्दन करना चाहिए।" सानुदास के वस्त्र उतारकर उसके शरीर पर कटु तेल का मर्दन किया गया फिर उसे कहा गया कि थोड़ी देर दारिका का अभ्यंग किया जायेगा, इसलिए वह नीचे चला जाये। छठी मंजिल पर उसे रत्न संस्कार करने वाले दिखाई दिये। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि सर्वकलाओं में निष्णात होने के कारण उसके सामने उन्हें लज्जा आती है । उन्होंने उसे अलङ्कारकर्म के लिए पाँचवीं मंजिल पर जाने की प्रार्थना की। पाँचवीं मंजिल पर से चित्रकारों ने चौथी पर भेज दिया । तत्पश्चात् घटदासियों ने उसके ऊपर गोबर का पानी डाल उसे बाहर निकाल दिया । प्रासाद पर बंदिजनों की ब्वनि सुनाई पड़ी।' __ श्रेष्ठीपुत्र की देशविदेशयात्रा (अ) वसुदेवहिंडी : चारुदत्त की देशविदेशयात्रा : वसंततिलका गणिका के घर से चलकर देशविदेश की यात्रा के पश्चात् अपनी माता और पत्नी से पुनर्मिलन की कथा के लिए देखिए पोछे (पृ० ३१- ३७) । (आ) बृहत्कथाश्लोकसंग्रह : सानुदास की देशविदेश यात्रा : सानुदास ने अपने घर की ओर गमन किया । पुरवासी उसे धिक्कार रहे थे । जो भी कोई मित्र उसे सामने देखता, वही घृणा से मुँह मोड़ लेता । जिस घर के आँगन में वह जाता, वहीं लोग उसके ऊपर गोबर का पानी फेंकते । इस प्रकार लोगों से तिरस्कृत हो, वह अपने गृहद्वार पर पहुँचा । घर में प्रवेश करते हुए सानुदास को द्वारपाल ने रोक दिया । सानुदास ने प्रश्न किया कि क्या माता मित्रवती अब नहीं रही ? द्वारपाल ने उत्तर दिया-उसकी अनाथ माता घर बेचकर अपने पौत्र और वधू के साथ अन्यत्र चली गयी है । प्रथम कक्ष में जहाँ बढ़ई काम कर रहा है, वहाँ जाकर पूछो । ज्ञात हुआ कि दरिद्रता के कारण वह अपनी पुत्रवधू के साथ दरिद्रवाटक (दरिद्रों की बस्ती में जाकर रहने लगी है । वहाँ पहुँचकर सानुदास ने अनेक बालकों से घिरे हुए, नीम के नीचे बैठे अपने पुत्र दत्तक को देखा । वह उनका राजा बना हुआ था । सानुदास दत्तक के पीछे-पीछे चलकर जीर्णशीर्ण फटी-टूटी चटाइयों को जोड़कर बनाई हुई कुटिका के आँगन में पहुँचा । दासी १. वही, दूसरा भाग, ९३-१३२ पृ. २२७-३० । २. वसुदेवहिंडी में मित्रवती चारुदत्त की पत्नी का नाम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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