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आसन चलायमान हो गया। देवों को सम्बोधित कर के इन्द्र ने कहा-सुनो, नमुचि पुरोहित के अनाचरण के कारण प्रकुपित विष्णु मुनि त्रैलोक्य को भी निगल जाने में समर्थ हैं, अतएव इन्हें अनुनय-विनयपूर्वक गीत और नृत्य के उपहार से शीघ्र ही शान्त करना चाहिए । तुंबरू और नारदजी ने विद्याधरों पर अनुग्रह करके उन्हें गंधर्वकला की ओर प्रेरित किया । विष्णु-गीतिका से उपनिबद्ध, सप्तस्वर तंत्री से निःसृत और मनुष्य लोक में दुर्लभ गांधार स्वरसमूह को उन्हें धारण कराया----
"हे साधुओं में श्रेष्ठ ! आप शान्ति धरें । जिनेन्द्र भगवान् ने क्रोध का निषेध किया है । जो क्रोधशील होते हैं, उन्हें बहुत समय तक संसार में परिभ्रमण करना होता है।"
इस गीतिका को विद्याधरों ने ग्रहण किया ।
गंधर्वदत्ता और वीणावादक ने वीणा बजाकर गांधार ग्राम की मूर्छना से, एकचित्त होकर, तीन स्थान और क्रिया से शुद्ध, ताल, लय और ग्रह की समतापूर्वक विष्णुगीतिका का गान किया । नागरकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की । श्रेष्ठी ने प्रसन्न मन से इस कार्य के लिए नियुक्त आचार्यों से निर्णय सुनाने का अनुरोध किया । उन्होंने कहा--जो इस बिटिया ने गाया है, वही इस ब्राह्मण ने बजाया है, और जो इस ब्राह्मण ने गाया है वही बिटिया ने बजाया है ।
यवनिका हटा दी गयी ।' नागरकों ने उत्सव समाप्त होने की घोषणा की । प्रतियोगिता समाप्त हो गयी। गंधर्वदत्ता को पति की प्राप्ति हुई । श्रेष्ठी ने नागरकों का सम्मान कर उन्हें विसर्जित किया ।
चारुदत्त श्रेष्ठी ने स्कंदिल से प्रार्थना की-आपने अपने दिव्य पुरुषार्थ के बल से गंधर्वदत्ता को प्राप्त किया है, अब इसका पाणिग्रहण कर अनुगृहीत करें । लोकश्रुति है - ब्राह्मण की चार भार्याएँ हो सकती हैं-ब्राह्मणी, क्षत्रियाणी, वैश्या
और शूद्री । यह आपके अनुरूप है और कुछ बातों में विशिष्ट भी हो सकती है । १. उवसम साहुवरिया ! न हु कोवो वण्णिओ जिणिदेहिं । हुति हु कोवणसीलया, पावंति बहूणि जाइयव्वाई ।।
चित-संभूत नामक मातंग मुनियों की कथा में उच्चवर्गीय लोगों से अपमानित हुए संभूत की क्रोधाग्नि को शांत करने के लिए चित्त उसके पास पहुँचता है।
उत्तराध्ययन टीका, १३, पृ० १८६ अ । २. तुलनीय, उदयन और वासवदत्ता के आख्यान से । ३. बृहत्कथाश्लोकसंग्रह में यहाँ मनुस्मृति का प्रमाण उद्धृत है ।
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