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________________ स्कंदिल का खूब आदर-सत्कार किया गया। राजा के अनुरूप बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से उसे अलंकृत किया गया। गंधर्वदत्ता शृङ्गार-प्रसाधन से सज्जित हुई । जैसे लक्ष्मी को कुबेर के समीप बैठाया जाता है, वैसे ही कुल वृद्धाओं ने गंधर्वदत्ता को उसके समीप लाकर बैठाया । श्रेष्ठी ने निवेदन किया-स्वामी ! कुल-गोत्र जान कर आप क्या करेंगे ? या तो आप अग्नि में हवन करें या मेरी पुत्री को करने दें। पाणिग्रहण की क्रिया संपन्न हुई। दोनोंने गर्भगृह में प्रवेश कर रात्रि व्यतीत की।' ( आ ) बृहत्कथाश्लोक संग्रह : नरवाहनदत्त और सानुदास की कन्या गंधर्वदत्ता का विवाह : नरवाहनदत्त किसी अज्ञात देश में आया, जहाँ उसने घंटियों की आवाज करते हुए गोमंडल को देखा । पूर्व दिशा में सूर्य का उदय हो रहा था और भ्रमरों का गुंजारव सुनाई पड़ रहा था । वह एक उद्यान में आया । उद्यान में उच्च शिखरवाला एक मंदिर था । द्वारपाल ने अन्दर जाने से उसे रोका । वीणा बजाते हुए उसने मंदिर में प्रवेश किया। वहाँ बैठा हुआ नागरकों का अधिपति, अमितगति के वीणावादन के श्रवण में अनुरक्त था। उसने उठकर अमितगति को अपने शिलासन पर बैठाया । उसके पैरों का संवाहन किया और पाद प्रक्षालन पूर्वक अर्घ्य प्रदान किया । नरवाहनदत्त ने अपना परिचय देते हुए कहा-वह वत्सदेश निवासी ब्राह्मण है। मंत्रवादियों के मुख से सुन कर उसने किसी यक्षी की साधना की । यक्षी के साथ वह पर्वत और वनों में भ्रमण कर रमण करने लगा । एक बार उसके मन में विचार आया कि पातालमंत्र की आराधना कर असुरी के साथ रमण करना चाहिए। यक्षी को इस बात का पता लगा तो ईर्ष्यावश उसने उसे भूमि पर ला पटका । नागरकेश्वर ने कहा-यह प्रदेश अंग जन-पद की राजधानी चंपा है। मेरा नाम दत्तक है और वीणा प्रिय होने से मैं वीणादत्तक नाम से प्रख्यात हूँ। वत्सदेशवासी ब्राह्मण ने वीणादत्तक के साथ प्रवहण में सवार हो चंपा के लिए प्रस्थान किया । मार्ग में वीणावादन में अनुरक्त हलवाहों को देखा। वटवृक्ष के नीचे बैठे हुए ग्वाले बेसुरी वीणा बजा रहे थे । दोनों वणिक्पथ पर पहुँचे । नगरद्वार के पास वीणा के विभिन्न अवयवों से भरी हुई गाड़ियों को देखा। ये गाड़ियाँ वीणा३. पृ० १२६-३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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