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उसने वीणा पानी में भिगोई और उसमें से बाल निकालकर दिखा दिया ।
दूसरी मंगवाई गई। उसने कहा-जंगल की अग्नि से जले हुए काष्ठ से यह तैयार की हुई है, अतः इसे बजाने से इसमें से कर्कश आवाज निकलेगी।
तीसरी लाई गई । वह जल में डूबे हुए काष्ठ से तैयार की गयी थी, अतः वीणावादक ने कहा कि उसमें से गंभीर आवाज निकलेगी। उसे भी अस्वीकार कर दिया गया। परिषद् आश्चर्यचकित रह गयी।
___ तत्पश्चात् चंदन से चर्चित सुगंधित पुष्पों की माला से अलंकृत सप्त स्वर वाली तंत्री मंगवाई गई । वीणावादक ने उसकी प्रशंसा की ।
उसने कहा कि यह आसन मेरे योग्य नहीं।। __ बहुमूल्य आसन बिछाया गया। श्रेष्ठी ने विष्णुगीतिका बजाने का अनुरोध किया। उसने साधुओं के गुणकीर्तन में गायाजाने वाला विष्णुमाहात्म्य गीत सुनाना आरंभ किया।
विष्णुगीतिका की उत्पत्ति-हस्तिनापुर में राजा पद्मरथ और रानी लक्ष्मीमती के विष्णु और महापद्म नामक दो कुमार । विष्णुकुमार की प्रव्रज्या । महापद्म राजा का पुरोहित नमुचि । वह जैन साधुओं द्वारा वाद में पराजित । मन-ही-मन साधुओं से प्रद्वेष । राजा को प्रसन्न कर राजपद की प्राप्ति । हस्तिनापुर में साधुओं का चातुर्मास । नमुचि द्वारा उन्हें राज्य से बाहर चले जाने का आदेश । विष्णुकुमार को आकाशगामी विद्या की सिद्धि। संघ पर उपद्रव होने के कारण उन्हें आमंत्रित किया गया । विष्णुकुमार ने नमुचि पुरोहित को बहुत समझाया, लेकिन उसने एक न सुनी।
__विष्णुकुमार ने नमुचि से एकांत स्थल में तीन विक्रम ( पैर ) भूमि माँगी । उन्होंने कहा कि साधु इस प्रदेश में रह कर प्राणत्याग कर देंगे, क्योंकि उनके लिए वर्षाकाल में गमन करना निषिद्ध है । इससे साधुओं के वध करने की नमुचि की प्रतिज्ञा भी पूरी हो जायेगी । नमुचि ने तीन पैर भूमि प्रदान करने की स्वीकृति दे दी।
रोष से प्रज्वलित विष्णुकुमार मुनि का शरीर बढ़ने लगा । उन्होंने अपना एक चरण उठाया । नमुचि पैरों में गिर पड़ा । वह अपने अपराधों की क्षमायाचना करने लगा। विष्णुकुमार ने ध्रुपद पढ़ा और क्षण भर में दिव्य रूप धारण कर लिया । पृथ्वी कंपित हो उठी। विष्णु ने अपना दाहिना पग मंदर पर्वत पर स्थापित किया । इसे उठाते समय समुद्र का जल क्षुब्ध हो उठा । इन्द्र का
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