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हिमालय पर्वत के शिखर पर कौशिक नाम का मुनि रहता था । नन्दन वन का त्याग करने वाली बिन्दुमती ने बहुत काल तक उसकी आराधना की । कौशिक मुनि ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया । उसके दो संतानें हुई- एक मैं और दूसरी मेरी बहन मत्सनामिका । ___ अंगारक और व्यालक नामक अपने मित्रों के साथ मैं समय व्यतीत करने लगा। काश्यपस्थलक नामक नगर में मैंने कुसुमालिका कन्या को देखा । सुन्दर होने के कारण वह मेरे मन में बस गयी। अपने मित्रों के साथ कुसुमालिका को लेकर नदी किनारे पर्वत के वृक्षकुंज में रति के लिए गया । मैंने देखा कि अंगारक टेढ़ी गर्दन करके ताक रहा था । अंगारक ताड़ गया और वह चुपके से भाग खड़ा हुआ।
__ मेरी समझ में नहीं आया कि अपनी कान्ता को लेकर मैं कहाँ जाऊँ । वहां से मैं पर्वत से बहनेवाली इस नदी के पुलिन पर आया । वहाँ से सुरत के योग्य लतागृह में प्रवेश किया । उसके आगे का वृत्तान्त आप लोगों को ज्ञात
आप लोग मुझे संकट के समय स्मरण करें यह कहकर प्रणामपूर्वक वह विद्याधर अंगारक का पीछा करने के लिए आकाश में उड़ गया।'
५ गंधर्वदत्ता का विवाह (अ) वसुदेवहिंडी : वसुदेव और चारुदत्त की कन्या गंधर्वदत्ता का विवाह : वसुदेव ने कहा—मैं मगध का निवासी गौतम गोत्रीय स्कंदिल नाम का ब्राह्मण हूँ। यक्षिणियों से मेरा प्रेम है। एक यक्षिणी मुझे अपने इष्ट प्रदेश में ले गयी । इतने में दूसरी ने ईर्ष्यावश उसे पकड़ लिया। दोनों में कलह होने लगी, मैं गिर पड़ा। इसलिए मैं नहीं जानता कि यह प्रदेश कौनसा है।
अधेड़ उम्र के मनुष्य ने उत्तर दिया-इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि यक्षिणियाँ तुमसे प्रेम करती हैं।
पता चला कि नगरी का नाम चम्पा है। वहाँ एक मन्दिर था । पादपीठ पर नामांकित वासुपूज्य भगवान् की मूर्ति प्रतिष्ठित थी।
आगे चलने पर उसे हाथ में वीणा लिये हुए सपरिवार एक पुरुष दिखाई दिया । वीणाओं को बेचने के लिए लोग वीणाओं को गाड़ी में भरकर लिये जा १. ९. १-१०८ (पुलिन दर्शन सर्ग), पृ० ९९-१०९
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