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________________ १२६ गोमुख ने उत्तर दिया--तुम वज्रमूर्ख हो मरुभूति । क्या कोई प्रभु होने मात्र से उत्तम कामुक हो जाता है ? देखो, जिसकी कामना की जाती है और जो कामना करता है, वह उत्तम (जैसे-मैं); जो कामना नहीं करता और उसकी कामना की जाती है, वह मध्यम (जैसे-आर्यपुत्र); और जो किसी की कामना करता है और उसको कामना नहीं की जाती, वह अधम; तथा न जिसको कामना की जाती है और न वह किसी की कामना करता है, वह नकेचन पुरुष हैं । इनमें तुम नकेचन की श्रेणी में आते हो।' ३ गणिकापुत्री की कथा (अ) वसुदेव हिंडी : कालिन्दसेना गणिका की पुत्री सुहिरण्या : शंब बुद्धिसेन, जयसेन और सुदारक के साथ बड़ा होने लगा। एक बार शंब को वासुदेव कृष्ण के पादवंदन के लिए लाया गया । कृष्ण बालक को खिलाने लगे। कालिंदसेना भी अपनी कन्या सुहिरण्या को कृष्ण के पादवंदन के लिए लायी । वासुदेव ने पूछा-कालिंदसेना ! यह तुम्हारी कन्या है ? कालिंदसेना--जी महाराज ! वासुदेव ने सुहिरण्या को कुमार शंब के पास छोड़ देने को कहा । दोनों ने एक दूसरे को आलिंगन किया । कृष्ण ने मन्त्री की ओर देखा । मन्त्री ने कहा- ठीक ही है। कालिंदसेना बोली-~~-महाराज ! यह कंचनपुर के अधिपति हेमांगद की कन्या है, इसे कुमार की सेविका बनाने का अनुग्रह करें। कृष्ण ने कौटुंबियों को आदेश दिया—देखो, सुहिरण्या मेरी पुत्रवधू है, कुमार की भाँति इसकी भी संभाल करना । शंब ने बुद्धिसेन आदि मित्रों के साथ कलाओं की शिक्षा प्राप्त की । युवावस्था को प्राप्त होने पर वह दूसरे वासुदेव के समान जान पड़ने लगा । कुमार द्वारा धारण किये हुए पुष्पशेखर को बुद्धिसेन उससे माँगकर कहीं ले जाता । इसी प्रकार उसके बदले हुए वस्त्र तथा खाने से बचे हुए मोदकों को वह अन्यत्र ले जाता यह कहकर कि वह उन्हें खायेगा। १. यः काम्यते च कामी च स प्रधानमहं यथा । अकामी काम्यते यस्तु मध्योऽसावर्यपुत्रवत् ॥ यस्तु कामयते कांचिदकामां सोऽधमः स्मृतः । ते नकेचन भण्यन्ते ये न काम्या न कामिनः । २. पृ० ९८ बृहत्कथाश्लोकसंग्रह १०, १५-२३, पृ० ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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