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एक बार रत्नकरंडक उद्यान में सुहिरण्य और हिरण्या गणिकापुत्रियों का नृत्य होने वाला था । शंब अपने मित्रों के साथ रथ में सवार हो उद्यान में पहुँचा । सुदारक उसका सारथि बना । मार्ग में रथ का पहिया ठीक करने के लिए रथ को खड़ा किया । एक कन्या ने आकर कुमार के मुकुट से लटकते हुए फुंदों को अपने दोनों हाथों से ऊपर कर दिया । उद्यान में पहुँच हिरण्या और सुहिरण्या का मनोहारी नृत्य देखा । शंब ने हिरण्या की ओर इस प्रकार दृष्टिपात किया जैसे कामदेव रति की ओर करता है । तत्पश्चात् शंब ने मित्रों के साथ नगरी के लिए प्रस्थान किया ।
बुद्धिसेन ने हाथ में पोथी-पुस्तक लिए हुए पुरुषों को देखा । आपस में वे कह रहे थे— “देव की आज्ञा है कि द्वारका में जितने मूर्ख हों और जिसने पंडित हों, इन सब के नाम लिखकर भेजे जायें । यह बुद्धिसेन यदि रथ में सवार हो जाता है तो इसका नाम पंडितों की सूची में लिखा जायगा, अन्यथा मूर्खो की ।" यह सुनकर बुद्धिसेन रथ पर सवार हो गया । मार्ग में नयनाभिराम दृश्य देखता हुआ वह आगे बढ़ा । आगे चलकर मत्त गज पर आरूढ़ एक महावत ने हाथी को वश में रख सकने की असमर्थता बताते हुए सारथि से रथ लौटाने का अनुरोध किया । रथ गणिकाओं के आवास में से होकर गुजरा । तरुणों के ईर्ष्या, प्रणयकोप और प्रसादन के वचन सुनते हुए बुद्धिसेन ने एक तोरण युक्त भवन में प्रवेश किया । वहाँ दासियों से परिवृत एक कन्या दिखायी दी । कन्या ने प्रणामपूर्वक उसका स्वागत किया और उसके पदों का प्रक्षालन कर आसन पर बैठाया । भोगमालिनी परिचारिका को बुलाया गया । वह बुद्धिसेन को गर्भगृह में ले गयी । शयनारूढ़ होने पर वह उसके पादों का संवाहन करने लगी । फिर, उसने वक्षस्थल के संवाहन करने की इच्छा व्यक्त की । बुद्धिसेन ने सोचा कि दासी निपुण जान पड़ती है जो पादों का संवाहन कर वक्षस्थल का संवाहन करना चाहती है । अपने स्तनों द्वारा वह वक्षस्थल का संवाहन करने लगी । हाथों से संवाहन करने की अपेक्षा स्तनस्पर्श में विशेषता होती है । जिस प्रकार हस्तिनी हाथी को रति कराती है, उसी प्रकार उसने भी कराई । बुद्धिसेन वहाँ बार-बार जाने लगा ।
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बृहत्कथाश्लोकसंग्रह (१०, २६१) में मुकुट को ऊपर करने का उल्लेख है ।
तुलनीय बृहत्कथालोकसंग्रह १०, २७१, पृ० १३५
तथा ११वां सर्ग |
वसुदेवहिंडी, पृ० १०१ ।
मूलपाठ है 'पत्त लिवासणहत्थे' ।
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