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________________ ફરક धन का उपभोग करता हुआ भी उसमें वृद्धि करता है, वह उत्तम, जो उसे क्षीण नहीं होने देता, वह मध्यम और जो उसे खा-पटका कर खत्म कर देता है, उसे अधम पुरुष कहा जाता है । धर्म की अपेक्षा पुरुषों के उत्तम और मध्यम-ये दो भेद किये गये हैं। स्वयंबुद्ध उत्तम और बुद्धों द्वारा बोधित पुरुष मध्यम है । काम की अपेक्षा पुरुषों के तीन भेद हैं । जो स्वयं कामना करता है और उसकी भी कामना की जाती है, वह उत्तम; जिसकी कामना की जाती है, लेकिन जो स्वयं कामना नहीं करता वह मध्यम; तथा जो स्वयं कामना करता है लेकिन उसकी कामना नहीं की जाती, उसे अधम कहा गया है। जयसेन-आर्यपुत्र शंव इन तीनों में से कौनसे हैं ? बुद्धिसेन- अर्थ और धर्म के बारे में कुछ कह सकना कठिन है; हाँ, काम के बारे में उन्हें मध्यम कहा जा सकता है । जयसेन-~और स्वयं तुम कौनसे हो ? बुद्धिसेन-उत्तम ! जयसेन ---(क्रुद्ध होकर) अरे पंडितमन्य ! तू अपने आपको उत्तम और स्वामी को मध्यम कहता है ! बस, यही तेरी शिक्षा है ? बुद्धिसेन—तुम समझते नहीं ! जो दूसरों द्वारा कामना किये जाने पर स्वयं कामना नहीं करता, उसे मध्यम कहते हैं। जयसेन-अच्छा, बताओ, स्वामी की कौन कामना करता है ? बुद्धिसेन-नहीं बताऊँगा । यदि वे स्वयं पूछे तो कहूँगा । शंब-अच्छा कहो, मैं ही पूछ रहा हूँ।' (आ) बृहत्कथाश्लोकसंग्रह : गोमुख, मरुभूतिक, तपन्तक और हरिशिख नामक मित्रों के साथ रथ में सवार हो नरवाहनदत्त ने यात्रा के लिए प्रस्थान किया। धर्म, अर्थ और काम में इच्छासुखात्मक काम की मुख्यतापूर्वक कामशास्त्र के पंडितों ने चार प्रकार के पुरुषों का उल्लेख किया है-उत्तम, मध्यम, हीन और नकेचन । गोमुख को उत्तम और आर्यपुत्र को मध्यम कोटि का बताया गया । इसपर मरुभूति ने क्रुद्ध होकर गोमुख को फटकारा तुम बैल-के-बैल रहे जो तुम अपने आपको उत्तम और आर्यपुत्र को मध्यम कहते हो। अपने आपको अपने प्रभु से बढ़कर बताते हो ? १. पृ० १०१ २. वसुदेवहिंडी में हरिशिख, वराह, गोमुख, तपंतक और मरूभूतिक नाम आते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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