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(९) मात्राच्युत,' (१०) बिन्दुच्युत, (११) गूढ़चतुर्थपाद, (१२) भाणियब्विया (भणितव्यता), (१३) हृदयगाथा, (१४) पोम्ह (पद्म), (१५) संविधानक (१६) गाथार्ध, (१७) गाथाराक्षस और (१८) प्रथमाक्षररचना आदि महाकवियों द्वारा कल्पित कवियों के लिए दुष्कर प्रयोगों का वर्णन किया है ।
इसके अतिरिक्त कहारयणकोस, जिनदत्ताख्यान, सिरिवालकहा, उपदेशपद, धर्मोपदेशमालाविवरण, सुरसुंदरीचरिय आदि कथा-ग्रन्थों में मध्य-उत्तर, बहिःउत्तर, एकालाप और गतप्रत्यागत नामक प्रश्नोत्तर तथा समस्यापूर्ति, पादपूर्ति, प्रहेलिका, वक्रोक्ति, व्याजोक्ति और गूढोक्ति आदि के उदाहरण पाये जाते हैं । १. जिसमें क्रिया का लोप हो और मात्रा के सद्भाव से तद्भाव रहे, वह मात्राच्युत है । उदाहरण
मूलस्थितिमधः कुर्वन् मात्रैर्जुष्टो गताक्षरैः । विटः सेव्यः कुलीनस्य तिष्ठतः पथिकस्य सः ॥
यहाँ 'विट' में से 'इ' मात्रा हटा देने से 'वट' की प्रतीति होती है। इसी प्रकार बिन्दुच्युत समझना चाहिए । हेमचन्द्र ने मात्राच्युत, अर्धमात्राच्युत, बिंदुच्युत और वर्णच्युत-ये च्युत के चार प्रकार बताये हैं । इनके उदाहरण भी दिये
हैं । (काव्यानुशासन, ५, ४, पृ० ३१५-२२) । २. जिसमें प्रथम तीन पादों में चतुर्थ पाद गूढ रहता है, उसे गूढचतुर्थपाद' कहते हैं ।
इसी प्रकार भाणियब्विया (भणितव्यता), हृदयगाथा.पोम्ह (पद्म), गाथार्ध, संविधानक, गाथाराक्षस और प्रथमाक्षररचितगाथा के लक्षण समझने चाहिए । प्रथमाक्षररचितगाथा का उदाहरण--
दाणदयादक्खिण्णा सोम्मा पयईए सव्वसत्ताणं । हंसि व्व सुद्धपक्खा तेण तुमं दंसणिज्जासि ॥
--दान और दया में कुशल, स्वभाव से समस्त जीवों के प्रति सौम्य और हंसिनी के समान तुम शुद्ध पक्ष वाली हो, अतएव दर्शनीय हो ।
इस गाथा के तीनों चरणों के प्रथम अक्षर लेने से 'दासो है' (अर्थात्, मैं दास हूँ) रूप बनता है। प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ. ४५५ वही, पृ० ४७८
वही, पृ० ४८० ___ औत्पत्तिकी, वैनियिकी, कर्मजा और पारिणामिको बुद्धियों के उदाहरणों के लिए देखिए,
पृ० ४८-९७ । प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ५०२ वही, पृ० ५४०-४१
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