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________________ गया। थोड़ी देर बाद सन्दूकची को खोलकर देखा तो वहाँ एक छिपकली दिखाई पड़ी । उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन पतिंगा कहीं दिखायी न दिया। राजा ने सोचा कि अवश्य ही यह छिपकली उसे चट कर गयी होगी ! _उसके मन में विचार आया कि कर्म का भोग भोगे सिवाय छुटकारा नहीं। वैद्य लोग औषधि, मंत्र-तंत्र और योगविद्या द्वारा रोगी की चिकित्सा कर उसे अच्छा कर देते हैं, किन्तु पूर्वजन्म कृत कर्मों से जीव की रक्षा करने में वे असमर्थ हैं।' धान्य का दृष्टान्त मनुष्य जन्म की दुर्लभता का प्रतिपादन करने के लिए धान्य के दृष्टांत द्वारा बताया गया है कि यदि समस्त भरत क्षेत्र के धान्यों को एकत्र कर उनमें एक प्रस्थ सरसों मिला दी जाये तो जैसे किसी दुर्बल और रोगी वृद्धा के लिए उस सरसों को समस्त धान्यों से पृथक् करना अत्यंत कठिन है, वैसे ही अनेक योनियों में भ्रमण करते हुए जीव को मनुष्य जन्म की प्राप्ति दुर्लभ है। झुंटणक पशु का दृष्टान्त ___ कोई श्रेष्ठिपुत्र धन-सम्पति के नष्ट हो जाने से दरिद्र हो गया। उसकी पत्नी ने उसके मायके जाकर झुंटणक पशु लाने को कहा जिससे कि उसके रोमों से वे कीमती कंबल तैयार कर आजीविका चला सकें । लेकिन पत्नी का कहना था कि रात-दिन तुम्हें उस पशु के साथ ही रहना पड़ेगा, नहीं तो वह मर जायेगा। पत्नी के कहने पर वह अपनी ससुराल से झुटणक को ले आया। उसे एक बगीचे में छोड़कर वह अपनी पत्नी से मिलने आ गया । पत्नी ने पूछा-झुंटणक कहाँ है ? उसने उत्तर दिया-बगीचे में । यह सुनकर उसकी पत्नी ने सिर धुन लिया। इस दृष्टांत से यहाँ लक्ष्य किया है कि जैसे श्रेष्ठीपुत्र अपनी पत्नी के उत्साहपूर्ण वचन सुनकर अपनी ससुराल में से झुंटणक पशु को लाता है, उसी प्रकार संसारी जीव गुरु के वचनों से धर्म को प्राप्त करता है। लेकिन जैसे श्रेष्ठीपुत्र लोकोप१. कुवलयमाला, २३०, पृ० १४० २. उपदेशपद, गाथा ८, पृ० २२ । आवश्यकनियुक्ति (८३३) में मनुष्य जन्म की दुर्लभता का प्रतिपादन करने के लिए चोल्लक, पाशक, धान्य, द्यूत, रत्न, स्वप्न, चक्र, चर्म, युग और परमाणु-ये दस दृष्टान्त दिये गये हैं । हरिषेण के वृहत्कथाकोश (३५-४०) में भी कतिपय दृष्टान्त पाये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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