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________________ कबूतर और बाज एक बार राजा मेघरथ अपनी पौषधशाला में बैठे थे कि वहाँ डर से काँपता हुआ एक कबूतर आकर गिरा । शरण में आये हुए कबूतर को राजा ने अभय दिया । कबूतर के पीछे-पीछे एक बाज़ भी वहाँ आया। वह कहने लगा"यह कबूतर मेरा भक्ष्य है, मुझे दीजिए ।" मेघरथ-----यह मेरी शरण आया है, तुम्हें कैसे मिल सकता है ? बाज़-यदि आप इसे न देंगे तो बुभुक्षित अवस्था में, आप ही कहिए, मैं किसकी शरण जाऊँ ? मेघरथ—जैसा जीवन तुझे प्रिय है, वैसा समस्त जीवों को भी है। बाज़ – बुभुक्षित अवस्था में धर्माचरण में मेरा मन कैसे लग सकता है ? आप ही बतायें। मेघरथ-मैं तुझे दूसरे किसी का मांस देता हूँ, इस कबूतर को तू छोड़ दे। बाज -- मैं मरे हुए जीव का मांस भक्षण नहीं करता, स्वयं मारकर ही भक्षण करता हूँ। मेघरथ-यदि ऐसी बात है तो जितना वजन इस कबूतर का है, उतना मांस मरे शरीर में से ले ले । यह कहकर राजा तराजू के एक पलड़े में कबूतर को बैठा, दूसरे पलड़े में अपना मांस काट-काटकर चढ़ाने लगा।' __वैराग्यप्रधान एक दृष्टान्त देखिए जो महाभारत तथा जैन और बौद्रों के धार्मिक कथाग्रन्थों के अलावा विश्व के अन्य साहित्यों में भी पाया जाता हैमधुबिन्दु दृष्टान्त देश-देशान्तर में पर्यटन करने वाले किसी पुरुष ने सार्थ के साथ अटवी में प्रवेश किया । चोरों ने सार्थ को लूट लिया । अपने साथियों से भ्रष्ट हुए इस पुरुष पर एक जंगली हाथी ने आक्रमण किया। हाथी के डर से भागते हुए उसे वसुदेवहिंडी, पृ. ३३७ । पंचतंत्र (काकोलूकीय) में यह कहानी पद्यरूप में दी हुई है । यहाँ कोई शिकारी कबूतरी को अपने जाल में पकड़ लेता है । मूसलाधार वर्षा होने लगती है। शिकारी सर्दी से ठिठुरता हुआ एक वृक्ष के नीचे जाकर खड़ा हो जाता है। उस वृक्ष पर रहने वाला कबूतर अपनी कबूतरी के वियोग से अत्यंत दुखी था। शिकारी के पिजड़े में बंद कबूतरी ने शिकारी को अतिथि समझ उसका सत्कार करने का अनुरोध किया । इसपर कबूतर ने अग्नि में प्रवेश कर अपने शरीर का माँस शिकारी को समर्पित किया। यह कथा महाभारत (शांतिपर्व १४३-४९), सिविजातक, कथासरित्सागर (१. ७. ८८-१०७) तथा पूर्णभद्रसूरि के पंचाख्यान में भी मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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