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- दोहा तुम भवदधिौं तरि गये, भये निकल अविकार ।
तारतम्य इस भक्ति को, हमें उतारो पार ॥१०॥ पूरा पाठ पढ़कर निर्मल वस्त्र से प्रतिमाजी का मार्जन करें और गंधोदक ग्रहण करें । पश्चात् ९ बार णमोकार मन्त्र पढ़कर नमस्कार करें।
संस्कृत अभिषेक पाठ श्रीमन्नतामरशिरस्तटरत्नदीप्ति तोया विभासिचरणाम्बुजयुग्ममीशं ।
अर्हन्तमुन्नतपदप्रदमाभिनम्य त्वन्मूर्तिषूद्यदभिषेक विधिं करिष्ये ॥१॥ अथ पौर्वाह्निक देवबंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ भावपूजास्तववन्दनासमेतं श्री पंचमहागुरुभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् ।
नोट – इसको पढ़कर ९ बार णमोकार मन्त्र की जाप देना चाहिये । प्रातःकाल पौर्वाह्निक, मध्यकाल में मध्याह्निक, अपराह्निक अपराह्न में देववंदना शब्द बोलना चाहिये ।
याः कृत्रिमास्तदितराः प्रतिमा जिनस्य संस्नापयन्ति पुरुहूतमुखादयस्ताः । सद्भावलब्धि समयादिनिमित्तयोगात्तत्रैवमुज्वलधिया कुसुमं क्षिपामि ||२||
इति अभिषेक प्रतिज्ञायै पुष्पांजलि क्षिपामि | श्री पीठक्लुप्ते विशदाक्षतौटु श्री प्रस्तरे पूर्णशशांककल्पे।
श्रीवर्तक चंद्रमसीति वार्ता सत्यापयन्तै श्रियमालिखामि ॥३॥ ॐ ह्रीं अहं श्री लेखनं करोमि (पाषाण शिला अथवा चौकी पर श्री लिखें)
कनकादिनिभं कनं पावनं पुण्यकारणम् ।
स्थापयामि परं पीठं जिनस्नपनाय भक्तितः ।।४।। ॐ ह्रीं श्री पीठस्थापनम् करोमि (चौकी पर बड़ी व ऊँची किनारे की थाली रखकर उसमें सिंहासन स्थापित करें)
भृङ्गारचामरसुदर्पण पीठकुम्भ तालध्वजातपनिवारकभूषिताये ।
वर्धस्व नंद जय पीठपादावलीभिः सिंहासने जिन भवंतमहं श्रयामि ||५|| ॐ हीं अहं श्रीधर्मतीर्थाधिनाथ! भगवत्रिह सिंहासने तिष्ठ तिष्ठ (घंटानाद पूर्वक जय जय शब्द बोलते हुए वेदी में से सर्वधातु की प्रतिमाजी व यन्त्र लाकर सिंहासन पर विराजमान करें)
श्री तीर्थकृत्स्नपनवर्यविधौ सुरेन्द्रः क्षीराब्धि वारिभिरपूरयदर्थ कुम्भान् । तांस्तादृशानिव विभाव्य यथार्हणीयान् संस्थापये कुसुमचंदन भूषिताग्रान् ॥६।।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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