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दीपक स्थापन
(ऊपर ढक्कन काँच वाला रखें) रुचिरदीप्तिकरं शुभदीपकं सकललोक सुखाकरमुज्ज्वलम् ।
तिमिर जालहरं प्रकरं सदा किल धरामि सुमंगलकं मुदा ॥ ॐ अज्ञानतिमिर हरं दीपकं स्थापयामि |
अंगन्यास एवं सकलीकरण मनः प्रसत्यै वचसः प्रसत्यै काय प्रसत्यै च कषाय हानिः ।
सैवार्थतः स्यात्सकली क्रियान्या मन्त्रैरूदारैः कृतिकल्पनांगा ॥ ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृत वर्षिणि अमृतं श्रावय श्रावय सं सं क्लीं क्लीं ट्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय हं सं इवीं क्ष्वी हंसः स्वाहा।
उक्त मन्त्र से सीधे हाथ में जल लेकर शरीर व सिर पर छिड़कें । ॐ हां ही हूं हौं हः अ सि आ उ सा सर्वांग शुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।
इस मन्त्र से जल द्वारा सर्वांग शुद्धि करावें ।
यहाँ सिद्ध, श्रुत, चारित्र, भक्ति पाठ कर कायोत्सर्ग करें। ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं हां अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ हूं णमो आइरियाणं हूं मध्यमाभ्यां नमः । ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं हौं अनामिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रः णमो लोए सवसाहणं हः कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
१. ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं हः कर तलाभ्यां नमः २. ॐ ह्रां ह्रीं हुं ह्रौं हः कर पष्ठाभ्यां नमः
उक्त मन्त्र उच्चारण करके क्रम से दोनों हाथ के अंगूठों आदि को मिला कर शुद्ध करें। ॐ हू डूं फट् किरिटि किरिटि घातय घातय परिविघ्नान् स्फोटय स्फोटय सहप्रखण्डान् कुरु कुरु परमुद्रां छिन्धि छिन्धि परमन्त्रान् भिन्धि भिन्धि क्षः क्षःहूं फट् स्वाहा । ___ उक्त रक्षामन्त्र से सरसों मंत्रित कर सर्व पात्रों को दे देवें, जिससे वे सरसों क्षेपण करें। ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं ह्रां मम शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं मम वदनं (मुख) रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ हूं णमो आइरियाणं हूं मम हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ह्रौं मम नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा ।
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[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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