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________________ यह मन्त्र पढ़कर एक सफेद कलश (बिना जल का) में सुपारी, हल्दी गाँठ, सरसों रखकर ऊपर श्रीफल लाल चोल से ढककर लच्छा से बांधकर विनायक यन्त्र के समीप चौकी पर प्रमुख व्यक्ति से स्थापित करावें । वहीं अखण्ड दीपक स्थापित करावें। चत्तारि मंगलं, अरिहन्ता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहन्ता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरिहन्ते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलि पण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि । ह्रौं सर्वशांति कुरु कुरु स्वाहा । २. ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः असिआउसा सर्व-शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा । ३. ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ असिआउसा अनाहत विद्यायै णमो अरिहंताणं ह्रौं सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा । __उक्त मन्त्र सूत की माला को दाहिने हाथ के अंगूठे पर रख कर उस हाथ को हृदय के पास रखना चाहिये। माला नाभि के नीचे न पहुँचे । माला प्रायः तर्जनी अंगुली की सहायता से फेरना चाहिये । कायोत्सर्ग में उक्त पंच नमस्कार मन्त्र का जप ९ बार २७ उच्छवास में करना चाहिये । उक्त मन्त्र किसी की हानि नहीं करते, इनसे कल्याण ही होता है । ये धर्म्यध्यान के अन्तर्गत हैं। प्रतिष्ठाचार्य व प्रतिष्ठाकरक को भी प्रतिष्ठा के दिनों में संयम रखते हुए ऐसे शान्ति एवं निम्नलिखित विघ्न निवारण मन्त्रों का जप अवश्य करते रहना चाहिये। ॐ हूं धूं फट् किरिटि किरिटि घातय-घातय पर-विघ्नान् स्फोटय-स्फोटय सहप्रखंडान् कुरु कुरु पर मुद्रां छिधि-छिंधि पर मंत्रान् भिंधि-भिंधि क्षः क्षः हुं फट् स्वाहा । इस मन्त्र को जपते हुए सर्षप = सरसों प्रक्षेपण करना चाहिये। प्रतिष्ठा सामग्री निम्नलिखित सामग्री बिंब (पंचकल्याणक) प्रतिष्ठा की है। इसमें से ही मन्दिर, वेदी आदि प्रतिष्ठा की सामग्री बताई जा सकती है : श्रीफल १५०, केशर ५ तोला, देशी कपूर १० तोला, सरसों २ किलो, लच्छा १०० ग्राम, चाँवल ५ मन, खोपरा गोले ४००, बादाम २० किलो, लोंग १५० ग्राम, कमल गट्टा ३५ किलो, घृत २ डिब्बे, चाटू १५, दीपक ५० और ५ छोटे-बड़े, माचिस २ पुड़े, सफेद लट्ठा (परदे हेतु), सूत की माला २५, मण्डल पर चादर १, पर्दे की रस्सियाँ, सुतली १०० ग्राम, चाँवल चूरी ५ किलो, चौकी १५, पाटे ३०, सुपारी २ किलो, हल्दी गाँठ २ किलो, कुंकुम १ किलो, पिसी हल्दी १ किलो, बोर्ड लकड़ी के २, चाक मिट्टी १२, मुकुट इन्द्र-इन्द्राणी १५-१५, हार ३० गोटे के, इन्द्रों के पीले दुपट्टे, कुर्ते, नये धोती दुपट्टे (इन्द्रों के), जपवालों के धोती दुपट्टे, बनियान, पंचे, सुवर्ण शलाका १, कोयला १ थैला, कन्यायें ८ (पीली लुगड़ी पहने हुए), लौकान्तिक कुमार ८ (धोती दुपट्टेवाले), लालचोल १ गज, पीला कपड़ा १५ गज, मिश्री १५ ग्राम। [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [२३ ___ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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