________________
तर्जनी और अनामिका करें । अनामिकांगुलि से १ पर्व हीन कनिष्ठिकांगुलि करें । पौंचे से लेकर कनिष्ठिका के मूल तक ५ भाग प्रमाण अंतराल करें । तर्जनी तथा मध्यमा के प्रमाण से कनिष्ठिका की मोटाई अर्धभाग प्रमाण घाटि करें। अंगुष्ठ में दो पर्व करें। अंगुष्ठ की परिधि चार भाग प्रमाण करें। शेष चारों अंगुलियों में ३-३ पर्व करें। अर्द्ध पर्व समान पाँचों ही अंगुलियों में नख करें। हथेली ७ भाग प्रमाण लम्बी और ५ भाग प्रमाण चौड़ी करें। हथेली की मध्य परिधि १२ भाग प्रमाण करें। अंगुष्ठमूल और तर्जनी के मूल का अंतराल २ भाग प्रमाण करें । भुजा गोल संधि जोड़ से मिली गोड़ा तक लम्बी करें । अंगुलियों को मिलाप युक्त, स्निग्ध, ललित, उपचय संयुक्त, शंख-चक्र-सूर्य कमलादि उत्तम चिन्हों करि युक्त करें ।
३. वक्षस्थल : २४ भाग चौड़ा वक्षस्थल करें। पीठ सहित वक्षस्थल की परिधि ५६ भाग प्रमाण हो । वक्षस्थल के मध्य में श्रीवत्स का चिन्ह हो । दोनों स्तनों का मध्यांतराल १२ भाग प्रमाण हो । स्तनों की चूचियाँ २ भाग प्रमाण वृत्ताकार हों । चूचियों के मध्य में भाग प्रमाण बीटलियाँ हों । वक्षस्थल से नाभि तक १२ भाग प्रमाण अंतराल हो ।
४. उदर : वक्षस्थल से नीचे और नाभि के ऊपरी भाग को उदर कहते हैं । नाभि का मुख १ भाग प्रमाण चौड़ा हो | नाभि को दक्षिणावर्त्तरूप में मनोहर गोल गहरी करें ।
५. पेडू : नाभि के मध्य से लेकर लिंग के मूल तक १२ भाग प्रमाण में अंतराल या पेडू करें। उनमें से आठ भागों में आठ रेखाएँ करें । १८ भाग प्रमाण चौड़ी कटि तथा उसकी परिधि ४८ भाग प्रमाण हो । तिकूणा (बैठक का हाड़) आठ भाग प्रमाण विस्तीर्ण हो । तिकूणा का मध्य भाग ८ भाग प्रमाण हो । ऊपरवाला भाग अनीछट बांसा के हाड़ से मिला हो। दोनों कूले ६ भाग प्रमाण गोल हों, स्कंध के सूत से गुदा पर्यन्त ३६ भाग लम्बा और आधा भाग प्रमाण मोटा रीढ़ का हाड़ हो ।
६. लिंग : ४ भाग प्रमाण लम्बा, मूल में २ भाग प्रमाण मोटा, मध्य में १ भाग प्रमाण मोटा, अन्त भाग प्रमाण मोटा लिंग हो और सर्वत्र अपनी मोटाई के प्रमाण से तिगुनी परिधि हो ।
७. पोते : दोनों पोतों को आम की गुठली के समान चढ़ाव उतार रूप में ५-५ भाग प्रमाण लम्बे और ४-४ भाग प्रमाण चौड़े पुष्ट रूप में बनावें ।
८. जाँघ : दोनों जाँघों को २४- २४ भाग प्रमाण पुष्ट रूप में बनावें । दोनों जाँघों के मूल में ११ - ११ भाग प्रमाण, मध्य में ९-९ भाग प्रमाण और अंत में ७-७ भाग प्रमाण चौड़ी रखें। इनकी परिधि सर्वत्र अपनी-अपनी मोटाई से तिगुनी रखें।
९. घुटना : जाँघों के नीचे और पींडियों से ऊपर मध्य में ६ भाग प्रमाण चौड़े और ४ भाग प्रमाण लम्बे दोनों घुटने रक्खें ।
१०. पींडी : घुटनों से नीचे टिकूण्या तक लम्बी २४ - २४ भाग प्रमाण दोनों पींडियाँ बनावें । ये दोनों
[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
<]
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org