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श्री जिनबिम्ब पंचकल्याणक की संक्षिप्त विधि नये जिनमंदिर के पास ही प्रतिष्ठा मंडप निर्माण करावें उसमें २४ हाथ का लंबा-चौड़ा चबूतरा या तख्त लगाकर स्टेज बनाकर उसके ऊपर मध्य में ८ हाथ का एक याग मंडल चबूतरा और बनवावें । उस पर पीछे भगवान् विराजमान कराने का स्थान और आगे यागमंडल मंडवावें।
प्रथम दिन शांतिजप ५१००० का संकल्प, नांदि कलश एवं इन्द्रप्रतिष्ठा कराकर भगवान् की प्रतिमा विराजमान करें, वहाँ झंडारोहण पूर्वक पंचपरमेष्ठी विधान या भक्तामर विधान प्रारंभ करें। उसी दिन दोपहर यागमंडल पूजा एवं मंदिर, वेदी, कलश, ध्वजादंड प्रतिष्ठा करावें । रात्रि में गर्भकल्याणक की पूर्व क्रिया, शास्त्र प्रवचन के पश्चात् करावें ।
दूसरे दिन प्रातः ६ से ७ तक गर्भकल्याणक में स्वप्न फल के बाद गर्भकल्याणक पूजा संपन्न करें। ७|| बजे भगवान् का जन्म बताकर इन्द्रों को मंडप की प्रदक्षिणा दिलाकर मंडप में या बाहर तख्ता पर चाँदी की पांडुक शिला पर जन्माभिषेक कराकर जन्मकल्याणक पूजा करावें । दोपहर को ३।। बजे से भगवान् का वैराग्य बताकर वहीं मुनिदीक्षा व तपकल्याणक पूजा करावें।
तीसरे दिन प्रातः आहारदान, अंकन्यास व दोपहर २ बजे से ५ बजे तक मन्त्र संस्कार व ज्ञानकल्याणक में समवसरण व वहाँ पूजा करावें । चौथे दिन प्रातः निर्वाण भक्ति करके शुभ मुहूर्त में नवीन वेदी में भगवान् विराजमान व कलश-ध्वजारोहण करें। शांतियज्ञ भी उसके बाद करावें ।
नोट- उक्त विधि में बिंब प्रतिष्ठा संबंधी खास-खास विधि व मन्त्र संस्कार सभी हैं। जलयात्रा. इन्द्रों की शोभायात्रा, पांडुकशिला, वनगमन, रथयात्रा, हाथी के जुलूस, झूला, राजसभा बाहरी कार्य हैं तथा आमंत्रण-पत्रिका छपाकर यात्रियों को बुलाना, उनके ठहरने का प्रबंध, स्वयंसेवक, भोजन का चौका चलाना, विशेष बाजों का बुलाना आदि छोड़ देने से संक्षिप्त विधि हो जाती है। प्रतिष्ठा कार्यक्रम को स्थानीय मंदिरों पर लगाया जा सकता है। ऐसा आयोजन इन्दौर व दिल्ली में सफल हो चुका है। __ बाहुबली स्वामी की भी स्वतंत्र प्रतिष्ठा की जा सकती है। 'प्रतिष्ठा तिलक' व 'आशाधर प्रतिष्ठा' ग्रंथों में मध्यम और संक्षिप्त प्रतिष्ठा विधि का उल्लेख है। दक्षिण में तो ऐसी प्रतिष्ठा होती रहती है। यह ८-९ दिन का कार्यक्रम ३-४ दिन में संपन्न हो जाता है।
विश्वमैत्री का प्रतीक 'ओम्' या 'ॐ' ओकारं बिन्दु संयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव, ओंकाराय नमो नमः ।। ओं यह अक्षर ब्रह्म है। इसके स्मरण से परमात्मा की उपासना होती है। यह अक्षर याने अविनाशी ब्रह्म का प्रतीक है, जिसकी महिमा सभी शास्त्रों में बतायी गयी है। उक्त मंगलाचरण रूप पद्य में ओं में उसकी अनंत शक्ति का द्योतक बिन्दु अनुस्वार से है। इस बिन्दु से श्रीं, क्लीं, हीं आदि समस्त बीजमन्त्र सार्थक बनते हैं और उनमें सजीवता आती है। यह अभ्युदय और मुक्ति दोनों ही को प्रदान करने वाला है। इसलिये सभी ऋषि, मुनि, योगी एवं गृहस्थ इसका निरन्तर ध्यान करते हैं।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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