________________
वृहत्फणामंडलमंडपेन । कल्याण मंदिर स्तोत्र । पार्श्वनाथ के ७ फण- सुपार्श्वनाथ के ५ फण मिलते हैं । न पार्श्वत् साधुतः साधुः, कमठात् जलतः ललः । स्तंभन, नागहृद, कलिकुंड, अहिच्छत्र, अंतरीक्ष, नवनिधि ।
भगवान् महावीर
1
भगवान् पार्श्वनाथ से २५० वर्ष बाद भगवान् महावीर हुए। विदेह देश में वैशाली के कुंडग्राम (कुंडलपुर) के महाराज सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के यहाँ आषाढ़ सुदी ६ को गर्भ में आये । चैत्र सुदी १३ को जन्म हुआ । हरिवंश, काश्यप गोत्र । सप्तखंड के महल में ऊपर जिन चैत्यालय । तीन ज्ञानधारी । राजा चेटक की पुत्री प्रियकारिणी (त्रिशला ) महावीर की माता थी । ७ हाथ शरीर की ऊँचाई । १. सर्प को वश में करना । २. दो ऋद्धिधारी चारण मुनियों का संदेह निवारण । ३. गज को वश में करना । ४. आजीवन ब्रह्मचारी रहना । ५. तीस वर्ष की उम्र में मुनि दीक्षा ग्रहण । ६ वर्ष १२ तक तप कर केवलज्ञान प्राप्त करना । ७. वैशाख सदी १० से श्रावण वदी १ तक दिव्यध्वनि नहीं खिरी । ८. श्रावण वदी १ वीर शासन दिवस को दिव्यध्वनि ६६ दिन बाद विपुलाचल पर खिरना । गौतमादि ११ गणधर । विहार ३० वर्ष, सात्यकिरुद्र के उपसर्ग को सहना । वैराग्य पूर्वभव विचारने से हुआ । दीक्षा - ज्ञान खंड वन में ली । भगवान् बुद्ध की आयु ८० वर्ष भगवान् महावीर की ७२ वर्ष । चौथे काल के पूर्ण होने में ७५ वर्ष ३ माह शेष रहे तब भगवान् महावीर का जन्म हुआ । मोक्ष कार्तिक कृष्णा ३० के प्रारंभ व कार्तिक कृष्णा १४ के अंत में । श्रेणिक (बिंबसार) प्रमुख श्रावक । निर्वाण भूमि पावापुर (बिहार) उसी दिन गणधर गौतम को केवलज्ञान ।
पूर्वभव
१. भीलराज मुनि सागरसेन को मारना चाहा कालिका स्त्री ने रोका, २. देवपर्याय, ३ . भरत पुत्र मारीच, भगवान् ऋषभदेव से अपने को भगवान् महावीर होना ज्ञात किया, ४. पंचम स्वर्ग का देव, ५. ब्राह्मण पुत्र जटिल, ६. प्रथम स्वर्ग का देव, ७ पुष्यमित्र ब्राह्मण- मिथ्या तप करने वाला हठयोगी, ८ . सानत्कुमार स्वर्ग में देव, ९. भारद्वाज विप्र पुत्र (संन्यासी), १०. देवपर्याय। इस प्रकार अनेक योनियों में भ्रमण करते हुए ११. राजगृह में विश्वभूति राजा का पुत्र विश्वनन्दी, १२. महाशुक्र १०वें स्वर्ग में देव, १३. त्रिपृष्ठ प्रथम नारायण, १४. सप्तम नरक में नारकी, १५. सिंह, १६. नरक । पश्चात्
१. सिंह - गंगा तट पर सिंह ने अजितंजय मुनि के संबोधन से हिंसा छोड़ी, पूर्वभव की स्मृति आयी, २. सौधर्म स्वर्ग में देव ( हरिध्वज), ३. विदेह के विजयार्द्ध पर कनकध्वज विद्याधर नरेश, ४. लांतव स्वर्ग में देव, ५. उज्जयिनी के राजा हरिषेण, ६. महाशुक्र स्वर्ग में देव, ७. धातकीखंड पूर्व विदेह पुण्डरीकिणी के राजा सुमित्रचक्री के प्रिय मित्र पुत्र मुनिदीक्षा ली, ८. बारहवें सहस्रार स्वर्ग में देव (सूर्यप्रभ), ९. नन्दिवर्धन राजा का पुत्र नन्दन सोलह कारण भावना भा कर जिन दीक्षा ली, १०. सोलहवें अच्युत स्वर्ग इन्द्र, ११. भगवान् महावीर ।
-
-
Jain Education International 2010_05
-
समवसरण में १२ कोठों में बैठने वाले
१. गणधर व मुनि, २. कल्पवासिनी, ३. आर्यिका व श्राविका, ४. ज्योतिषिणी, ५. व्यंतरी, ६. भवनवासिनी, ७. भवनवासी, ८. व्यंतर, ९. ज्योतिषी, १०. कल्पवासी, ११ मनुष्य, १२ तिर्यंच ।
२२८ ]
[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
For Private & Personal Use Only
-
www.jainelibrary.org