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नवम परि. १२. जन्मकल्याणक । अभिषेक इन्द्रों ने किया। प्रोक्षण पुरन्ध्री (सौ. महिला) ने किया। चन्दन चर्चन, पंचगव्य व गोमय से अभिषेक (१३८) शुद्धि अनेक प्रकार से, आचमन ।
मेरु से वापस लाकर भद्रपीठ पर विराजमान करना - इसे ही माता की गोद बताया है । (१४७) इसी की स्तुति की है।
दशम परि. १३. तप कल्याणक, सिद्ध, चारित्र, योगी भक्ति पाठ एकादश परि. १४. मन्त्र संस्कार - ४८ संस्कार, अंकन्यास, तिलक द्रव्यविधि बिंब पर।
अधिवासन (मुखवस्त्र) दिव्य ध्वनि सप्तभंगी का प्रतीक, यवमाला सुभिक्ष का प्रतीक, मारणादि दोष निवारण का प्रतीक सप्तधान्य ।
स्वस्त्ययन विधि, नयनोन्मीलन कंकण मोक्षण, केवलज्ञान
श्री मुखोद्घाटन, आशीर्वाद, विसर्जन, सिद्ध प्रतिष्ठा । यह सब अन्य प्रतिष्ठा-पाठों के समान हैं। इसमें प्रतिष्ठा की मध्यम व संक्षेप विधि बताई गई है।
वसुनन्दि श्रावकाचार (प्रतिष्ठा विधान का अंश) १. इन्द्र (प्रतिष्ठाचार्य) लक्षण, मण्डप-चबूतरा निर्माण, धूली कलशाभिषेक, आकर शुद्धि । चन्दन तिलक प्रतिमा को, मन्त्र, न्यास, पूजा अष्ट द्रव्य से ।
२. प्रतिमा लक्षण । प्रतिमा दोष से हानि । धूलि कलशाभिषेक एवं आकर शुद्धि की विधि, प्रतिमा को तिलक करें (१५०) मदन फल, सर्वधान्ययुक्त-मुखवस्त्र । कंकण बंधन, श्री मुखोद्घाटन, नेत्रोन्मीलन, कंकण-मोक्षण । विसर्जन।
आचारादि गुणाधारो रागद्वेष विवजितः ।
पक्षपातो ज्झितः शांतः साधुवर्गाग्रणीर्गुणी ॥८॥ यह प्रतिष्ठा में दीक्षा-गुरु का लक्षण है।
प्रतिष्ठासार संग्रह (ब्र. शीतल प्रसादजी) जप की विधि - मण्डप रक्षा, यागमण्डल गर्भकल्याणक - जन्मकल्याणक
तपकल्याणक - ज्ञानकल्याणक में तिलक दान, अधिवासना, मुखोद्घाटन, नेत्रोन्मीलन, मोक्षकल्याणक विधि, शान्तियज्ञ, सिद्ध आचार्यादि श्रुत प्रतिष्ठा विधि, चरण चिह्न । दश भक्ति पाठ।
बिना मन्त्र माता-पिता बनाये हैं, जिनका शास्त्र प्रमाण नहीं है, इसमें प्रतिष्ठा संबंधी कार्य नाटक के रूप में है।
गर्भकल्याणक में माताओं की पूजा [प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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