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अधिवासना पूजा में जल नहीं-गंध से शुरू कर पुष्प तक पीछे जिनाग्रे
मदन फल-सर्वधान्य-मुख वस्त्र-यवमाला-सप्तधान्य स्थापन-कंकण बंधन । पीछे नैवेद्य आदि से पूजा । १. स्वस्त्ययन, २. श्री मुखोद्घाटन, ३. नेत्रोन्मीलन।।
अनंत चतुष्ट्य, दश अतिशय, अष्ट प्रातिहार्य, कंकण मोक्षण, केवलज्ञान । सिद्ध-श्रुत-चारित्र-शान्ति भक्ति पाठ।
___ पंचमाध्याय अभिषेक, विसर्जन, आशीर्वाद यक्ष दीक्षा विसर्जन (१२२) ध्वजा प्रतिष्ठा
षष्ठोऽध्याय सिद्ध-आचार्यादि श्रुत-यक्ष प्रतिष्ठा
प्रतिष्ठा तिलक (श्री नेमिचन्द्रकृत) प्रथम परि. १. नित्य मह के अन्तर्गत बिम्ब प्रतिष्ठा। २. सौधर्मेन्द्र और यजमान के लक्षण और मन्त्र से उनकी स्थापना । दोनों के लिए एक ही मन्त्र ।
३. यज्ञ दीक्षा का मन्त्र पृथक् है - ॐ वज्राधिपतये आं हां अः ऐं ह्रौं ह्रः अ॒हं यः इन्द्राय संवौषट् । इसे २१ बार पढ़ें। पृष्ठ ३ पर प्रतिष्ठाचार्य से भिन्न धर्माचार्य सूचना व उनकी पूजा का उल्लेख।
४. इन्द्र आदि पूजकों का सकलीकरण, जिनेन्द्र दर्शन-पूजन नवदेव पूजा । २४ शासन देवों की पूजा।
द्वितीय परि. ५. प्रतिष्ठा विधि में अंकुरारोपण के दिन से प्रतिष्ठा कार्यों के दिन निश्चित किये गये हैं।
अंकुरारोपण विधान में सर्वाणयक्षादिपूजा । तृतीय परि. ६. शान्ति होम चतुर्थ परि. ७. मण्डप, वेदी, अग्निकुण्ड निर्माण पंचम परि. ८. भेरीताडन, ध्वजारोहण षष्ठ परि. ९. जलयात्रा सप्तम परि. १०. यागमण्डल अष्टम परि. ११. सकलीकरण-गर्भकल्याणक, शचीपतिवधू (श्री आदिको)।
विधि-नायक प्रतिमा को जलधिवासनं एवं बड़ी प्रतिमा को दर्पण दिखाकर घट के जल का छोड़ना । जिनमातृभाव स्थापनार्थं भद्रपीठ स्थापनं-सर्वकार्य इसी को लक्ष्य में लेकर करना, पंचगव्य से शुद्धि । २२२]
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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