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२. याग मण्डल विधान
३. सिद्ध, अर्हत्, आचार्य, श्रुत, चारित्र भक्ति पाठ
४. सर्वौषधि, चन्दन, जल से प्रतिमा शुद्धि (मन्त्र पूर्व में लिखे हैं) ५. मातृका न्यास व संस्कार माला रोहण
६. तिलक दान
ओं ह्रीं अर्हं असि आ उ सा अप्रतिशक्तिर्भवतु इस मन्त्र को १०८ बार जप कर नाभि में हैं लिखें ।
७. औं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री बाहुबलि स्वामिने नमः
इस मन्त्र का १०८ बार जप करें।
८. अधिवासना में मुख वस्त्रादि विधि पूर्ववत्
९. श्री मुखोद्घाटन, नेत्रोन्मीलन, प्राण-प्रतिष्ठा, सूरिमन्त्र, केवलज्ञान मन्त्र, (पूर्व प्रतिष्ठा मन्त्रों के अनुसार)
१०. बाहुबलि पूजा
११. शान्ति यज्ञ
नोट - श्री बाहुबलि स्वामी की वीतराग पंच परमेष्ठी के अन्तर्गत प्रतिमा है, प्रतिमा पर बेल होने से साधु अवस्था की भी मान लेने पर वीतरागता पूज्यता में बाधा नहीं आती, किन्तु वे केवली अर्हत भी हुये हैं, अतः भगवान् पार्श्वनाथ की फण सहित प्रतिमा के समान उक्त नं. ५, ६, ८, ९ के अनुसार मन्त्र संस्कार किये जाना उचित है। ध्यान रहे कि वे तीर्थंकर पंचकल्याणक प्राप्त नहीं हैं। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के साथ इनकी प्रतिष्ठा प्रभावनार्थ विस्तार से प्रतिष्ठा हो, इसलिए की जाती है ।
शान्तियज्ञ के मन्त्रों का स्पष्टीकरण
श्री आचार्य जिनसेन कृत महापुराण के ४० वें पर्व में शान्ति यज्ञ हेतु उल्लिखित मन्त्रों के संबंध में लिखा है कि
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एतेषु पीठिका मंत्राः, सप्तज्ञेयाः द्विजोत्तमैः ।
एतैः सिद्धार्चनं कुर्यादाधानादि क्रिया विधौ ॥७७॥
काम्य, निस्तारक, जाति, ऋषि, सुरेन्द्र, परमराज एवं परमेष्ठी, इन ७ पीठिका मन्त्रों का प्रयोग महापुराण के अनुसार विवाह आदि संस्कारों व प्रत्येक हवन के समय होता है । वे सिद्ध भगवान् के विशेषणरूप में है, यह उक्त श्लोक का आशय है । सिद्धचक्र मण्डल विधान की अन्तिम आठवीं पूजा के १०२४ मन्त्रों में जो सहस्रनाम के मन्त्र हैं, उनका व्याकरण के अनुसार जो अर्थ होता है वैसा ही अर्थ यहाँ भी है । यथा
[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
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