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________________ दिन अष्टमी शुभ क्वार सुद, सम्मेदगिरि निज ध्यायके । श्रीनाथ शीतल मोक्ष पाए, गुण अनंत लखाय के ॥ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥१०॥ ॐ हीं आश्विनशुक्ला अष्टम्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा। दिन पूर्णमासी श्रावणी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । जिन श्रेयनाथ स्वधाम पहुँचे, आत्म लक्ष्मी पायके ॥ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥११॥ ॐ ह्रीं श्रावणपूर्णमास्यां श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । शुभ भाद्र सुद चौदश दिना, मंदारगिरि निज ध्यायके । श्री वासुपूज्य स्वथान ली हो, कर्म आठ जलायके । हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥१२।। ॐ ह्रीं भादशुक्ला चतुर्दश्यां श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । आषाढ़ वद शुभ अष्टमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । श्री विमल निर्मल धाम लीनो, गुण पवित्र बनायके । हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥१३॥ ॐ ह्रीं आषादकृष्णा अष्टम्यां श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहप अम्मावसी वद चैत्र की, सम्मेदगिरि निज ध्यायके । स्वामी अनंत स्वधाम पायो, गुण अनंत लखायके ॥ हम धार अर्ध्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।। सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥१४।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाअमावस्यां श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। शुभ ज्येष्ठ शुक्ला चौथ दिन, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । श्री धर्मनाथ स्वधर्म नायक, भए निज गुण पायके । हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥१५|| ॐ हीं ज्येष्ठ शुक्लाचतुयां श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । शुभ ज्येष्ठ कृष्णा चौदसी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के [ श्री शांतिनाथ स्वधाम पहुँचे, परम मार्ग बतायके ॥ [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [२०५ ___ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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