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________________ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥ १६ ॥ ॐ ह्रीं ज्यॆष्ठकृष्णा चतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा | वैशाख शुक्ला प्रतिपदा सम्मेदगिरि निज ध्याय के । श्री कुंथुनाथ स्वधाम लीनो, परम पद झलकायके ॥ धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके, शुद्धात्म मन में भायके || १७|| ॐ ह्रीं वैशास्वशुक्ला प्रतिपदायां श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । अमावसी वद चैतकी, सम्मेदगिरि निज ध्यायके । श्री अरहनाथ स्वधान लीनों, अमर लक्ष्मी पायके ॥ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके, शुद्धात्म मन में भायके || १८ || ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा अमावस्यां श्रीअरनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । - शुभ शुक्ल फाल्गुन पंचमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । श्री मल्लिनाथ स्वथान पहुंचे, परम पदवी पायके ॥ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लाय । सब राग द्वेष मिटायके, शुद्धात्म मन में भायके || १९|| ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला पंचम्यां श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । फाल्गुण वदी शुभ द्वादशी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । जिननाथ मुनिसुव्रत पधारे, मोक्ष आनंद पायके ॥ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके, शुद्धात्म मन में भायके ||२०|| ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा द्वादश्यां श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । वैशाख कृष्णा चौदसी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । नमिनाथ मुक्ति विशाल पाई, सकल कर्म नशायक के || हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके, शुद्धात्म मन में भायके || २१ || ॐ ह्रीं वैशास्वकृष्णा चतुर्दश्यां श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । आषाढ़ शुक्ला सप्तमी, गिरनार गिरि निज ध्यायके । श्री नेमिनाथ स्वधाम पहुंचे, अष्ट गुण झलकायके ॥ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके । सब राग द्वेष मिटायके, शुद्धात्म मन में भायके ||२२|| ॐ ह्रीं आषाढशुक्ला सप्तम्यां श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । २०६ ] [ प्रतिष्ठा-प्रदीप ] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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