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हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।
सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥३|| ॐ हीं माघशुक्लाषष्ठयां श्रीसंभवनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
वैशाख सुदि षष्ठी दिना सम्मेदगिरि निज ध्यायके । अभिनंदन शिव धाम पहुंचे शुद्ध निज गुण पायके ॥ हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।
सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥४॥ ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लाषष्ठयां श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ चैत सुदि एकादशी सम्मेदगिरि निज ध्यायके । श्री सुमतिजिन शिव धाम पायो आठ कर्म नशायके ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।
सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥५|| ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लाएकादश्यां श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
शुभ कृष्ण फाल्गुन सप्तमी सम्मेदगिरि निज ध्यायके । श्री पद्मप्रभु निर्वाण हूवे स्वात्म अनुभव पायके । हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।
सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मनमें भायके ॥६।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णासप्तम्यां श्रीपदाप्रभुजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा ।
शुभ कृष्ण फाल्गुन सप्तमी सम्मेदगिरि निज ध्यायके । श्रीजिनसुपार्श्वस्वस्थान लीयो स्वकृत आनंद पायके । हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।
सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥७॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा सप्तम्यां श्रीसुपावजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
शुभ शुक्ल फाल्गुन सप्तमी सम्मेदगिरि निज ध्यायके । श्री चन्द्रप्रभु निर्वाण पहुंचे शुद्ध ज्योति जगायके । हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।
सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥८॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला सप्तम्यां श्रीचंद्रप्रभुजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
शुभ भाद्र शुक्ला अष्टमी, सम्मेदगिरि निज ध्यायके । श्री पुष्पदंत स्वधाम पायो, स्वात्म गुण झलकायके ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लायके ।
सब राग द्वेष मिटायके शुद्धात्म मन में भायके ॥९॥ ॐ ह्रीं भादशुक्ला अष्टम्यां श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । २०४]
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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