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________________ अधिवासना मुखवस्त्र आगे जो विधि करें तथा सिद्ध प्रतिमा आदि में भी मातृका या अंगन्यास स्वयं करके पीछे प्रतिमा पर . कर लेवें ओं हां ललाटे, ओं ह्रीं वाम कर्णे, ओं हूं दक्षिण कर्णे, ओं ह्रौं शिरः पश्चिमे, ओं हूं मस्तकोपरि, ओ क्ष्मां नेत्रयोः, ओं क्ष्मीं मुखे, ओं क्ष्मू कंठे, ओं मौं हृदये, ओं क्ष्मः वाह्वोः, ओं क्रों उदरे, ओं ह्रीं कट्यां, ओं क्लूं जंघयोः, ओं झू पादयोः, ओं क्षः हस्तयोः। मातृका-यंत्र पर प्रतिमा विराजमान कर मातृका यंत्र को २७ बार जप कर जलधारा छोड़ें। इसी प्रकार अन्य प्रतिमाओं पर भी करें। नूनं निरावृति चमत्कृतिकारि तेजो, नो शक्यमीक्षितवतामपि भावुकानां । इत्येवमर्पितनयानयनेन शम्भो- रये मुखाग्रमहवस्त्रमुपाकरोमि ॥ __ ॐ ह्रीं अर्हते सर्वशरीरावस्थिताय समदनफलं (मेनफल) सप्तधान्ययुतं यवमाला वलयं च जिमस्य मुखाग्रे यवनिकां (पर्दा) दत्वा जिनपादाग्रतः स्थापयामि। (जयसेन प्रतिष्ठा, पृ. २८०) कंकण बंधन मन्त्र ॐ अट्ठविहकम्ममुक्को,. तिलोयपुज्जोय संथुओ भयवं । अमरणरणाहमहिओ, अणाइणिहणो सिवंदिसओ स्वाहा ॥ (यह पद्य पढ़कर प्रतिमा के आगे चाँदी के तार का कंकण रख देवें) सुगंधिशीतलैः स्वच्छैः साधुभिर्विमलै लैः, ... -अनंतज्ञानदृग्वीर्य सुखरूपं जिनं यजे । ॐ ही अर्हते सर्वशरीरावस्थिताय पृथु पृथु जलं गृहाण गृहाण स्वाहा। .. काश्मीरचन्दनरसेन विलुब्ध शुम्भ- त्सौरभ्यमत्तमधुपावलि झंकृतेन । पीठस्थली जिनपतेरधिपादपद्मं, संचर्चयामि मुनिभिः परितः पवित्रां ॥ ॐ ह्रीं अर्हते सर्वशरीरावस्थिताय पृथु पृथु चन्दनं गृहाण गृहाण स्वाहा । मुक्ताफलच्छविपराजित कामकांति- प्रोद्भूत मोहतिमिरैकफलौघहेतुं । शाल्यक्षतार्थ परिपूर्ण पवित्रपात्र, - मुत्तारयामि भवतो जिनपस्य पावें ॥ ॐ ह्रीं अर्हते सर्वशरीरावस्थिताय पृथु पृथु अक्षतान् गृहाण गृहाण स्वाहा । सौरभ्य सांद्रमकरन्द मनोभिराम- पुष्पैः सुवर्णहरिचन्दनपारिजातैः । श्री मोक्षमानिवनिता परिलंभनाय, माल्यादिभिश्चरणध्तेरणिमुत्सृजामि || ॐ ह्रीं अर्हते सर्वशरीरावस्थिताय पृथु पृथु पुष्पाणि गृहाण गृहाण स्वाहा। षष्ठोपवासविधये नवसर्पिषाक्त, नैवेद्यभाजनमिदं परिवर्त्य सप्त । वारं तदीय परिहृत्यभिधाप्रसिद्धयै, संस्थापयेज्जिनवराग्रिम भूतधात्र्यां ॥ ॐ हीं अर्हते सर्वशरीरावस्थिताय पृथु पृथु नैवेद्यं गृहाण गृहाण स्वाहा। १९४] [प्रतिष्ठा-प्रदीप] JainEducation International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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