SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुन्दर पवित्र गंगाजल लेय झारी, डाळं त्रिधार तुम चरणन अग्र भारी । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा ॥ ॐ ह्रीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। श्री चन्दनादि शुभ केशर मिश्रलाये, भव ताप उपशम करण निज भाव ध्याए । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा || ॐ हीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। शुभश्वेत निर्मल सुअक्षत धार थाली, अक्षय गुणा प्रकट कारण शक्तिशाली । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। ॐ हीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । चम्पा गुलाब इत्यादि सुपुण्य धारे, है काम शत्रु बलवान तिसे बिदारे । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा || ॐ ह्रीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । फेणी सुहाल बरफी पकवान लाए, क्षुदरोग नाशने कारण काल पाए । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा || ॐ हीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । शुभदीप रत्न ममलाय तमोपहारी, तम मोह नाश मम होय अपार भारी । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजूं सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। ॐ ह्रीं मषभनाथ मुनीन्द्राय मोहअन्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। सुन्दर सुगंधित सुपावन धूप खेऊ, अरु कर्म काठको बाल निजात्म सेउं । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा ॥ ॐ हीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। द्राक्षा बदाम फल साथ भराय थाली, शिव लाभ होय सुख से समता संभाली । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा || ॐ ह्री ऋषभनाथ मुनीन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। .. शुभ अष्ट द्रव्य मम उत्तम अर्घ लाया, संसार खार जलतारण हेतु आया । श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनिंद चरणा, पूजू सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। ॐ हीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय अनर्घ्य पदप्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला जय मदा रूप तेरे सदा दोष ना, ज्ञान श्रद्धान पूरित धरै शोक ना । राज को त्याग वैराग्यधारी भये, मुक्ति का राज लेने परम मुनि भये ॥ आत्म को जान के पाप को भान के, तत्व को पायके ध्यान उर आन के । क्रोध को हान के मान को हान के, लोभ को जीत के मोह को भान के ॥ [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [१८९ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy