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धर्म मय होयके साधते मोक्ष को, बाधते मोक्ष को जीतते द्वेष को । शांतता धारतें सभ्यता पालते, आप पूजन किये सर्व अघ टालते ।। धन्य है आज हम दान सम्यक् करें, पाप उत्तम महापाप के दुख हरें ।
पुण्य सम्पत भरें काज हमरे सरें, आप सम होय के जन्म सागर तरें ॥ ॐ हीं ऋषभनाथ मुनीन्द्राय महाऽध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आहार हो जाने पर आचार्य कहें- धन्य यह दान, धन्य यह पात्र श्रीतीर्थंकर ऋषभदेव, धन्य यह दातार । चारों तरफ खूब जय जयकार शब्द हो । फिर शुद्ध जल से हाथों को धोकर कपड़े से पोंछ दें।
आचार्य प्रतिमा को दूसरे आसन पर विराजमान करें और दान का माहात्म्य समझावें तथा उस समय राजा सोम व श्रेयांस धर्मपत्नी सहित हाथ जोड़ें। प्रभु के सम्मुख खड़े रहें तथा चार दान व विद्या-दानार्थ कुछ रकम की घोषणा करावें तथा आचार्य अन्य लोगों को भी दान की प्रेरणा करें। इधर आचार्य भगवान् को लेकर मण्डप में ले जाकर भजन के साथ वेदी पर विराजमान करें।) नोट-पहले अपने अंगों पर नीचे के अंकों की स्थापना कर लेवें । नक्शे में देखें।
(अंक न्यास विधि)
मन्त्र संस्कार ॐ अं नमः ललाटेः । ॐ आं नमः मुख वृत्ते । इं ई क्रमशः दक्षिण वामनेत्रयोः । उ ऊं दक्षिण वाम कर्णयोः । ● ● दक्षिण वामनासिकयोः । लूं लूं दक्षिण वामकपोलयोः । एं ऐं ऊर्ध्वाधः ओष्ठ्योः । ओं औं ऊधिः दन्तयोः । अं अः मूर्ध्नि । कं खं दक्षिण बाहुदंडे । गं घं दक्षिण करांगुलिषु । चं छं वामबाहुदण्डे । जं झं वाम हस्तांगुलिषु । अं वाम हस्ताग्रे । टं ठं दक्षिण पाद मूले । डं ढं दक्षिण पादगुल्फे । णं दक्षिण पादाग्रे । तवर्ग वाम पादे । पवर्ग पाश्र्वादि कुक्ष्यन्तं । यं हृदि । रं दक्षिण स्कंधे। लं ककुदि (गला) । वं वामस्कंधे । शं हृदादि दक्षिण करे । षं हृदादि वाम करे। सं हृदादि दक्षिण पादे । हं हृदादि वामपादे । क्षं हृदादि जठरे न्यसेत् । गुल्फ-टिकून्या (चित्र देखें)।
मन्त्र संस्कार __ षट्कोण शिला पर विधिनायक प्रतिमा को विराजमान कर मातृका मन्त्र जपें- 'ॐ नमोऽहं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल लूं ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष ह क्लीं ह्रीं क्रौं स्वाहा' को २७ बार जपें व सभी प्रतिमाओं पर जलधारा करावें ।
ॐ णमो अरहताणं से धम्मं सरणं पव्वज्जामि झौं झौं स्वाहा । इस मन्त्र को २७ बार जपें । सर्व प्रतिमाओं पर पुष्प क्षेपण करें। निम्नलिखित ४८ संस्कार मन्त्र पढ़कर सर्व प्रतिमाओं पर पुष्प क्षेपण करें। ॐ ह्रीं इहार्हति सद्दर्शन संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ॥१॥
इतना कहकर पुष्प क्षेपें । इस तरह पुष्प क्षेपते जायें। ॐ ह्रीं इहार्हति सज्ज्ञान संस्कारः स्फुरतु स्वाहा ।।२।। १९०] .
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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