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________________ आहार दान व पूजा (ज्ञान कल्याणक के दिन प्रातः ९|| से १०|| तक में यह क्रिया करें) आहार देने के लिए इक्षु का रस तैयार किया जावे व पूजन की सामग्री हो । एक स्थान आहार देने को व एक स्थान पहले भगवान् को विराजमान कर पूजा करने को रहे । कोई दो गृहस्थों को राजा सोम व श्रेयांस स्थापित किया जावे। राजा सोम व श्रेयांस शुद्ध धोती- दुपट्टा पहनें, मस्तक ढकें । उनकी दोनों स्त्रियाँ भी शुद्ध वस्त्र पहनें। चारों नारियल से ढका पानी का कलश लेकर अपने निवास के आगे ही द्वारा - प्रेक्षण के निमित्त खड़े हों। आहारदाता की बोली न बोलें । आचार्य विधिनायक प्रतिमा को लेकर मंडप के बाहर से सिर पर धर कर लावें, उस समय सर्व सभाजन जय जयकार शब्द कहें। अब गृह के पास प्रभु आ जावें तब राजा सोम कहे- 'हे स्वामिन् ! नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोस्तु अत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ तिष्ठ आहार जल शुद्ध है। जब मुनिराज वहाँ ठहर जावें तब तीन प्रदक्षिणा देकर फिर आचार्य भगवान् को उच्च आसन पर विराजमान करें । दातार राजा सोम अपने पैर धोने के बाद भगवान् के चरणों को शुद्ध जल से धोवें और गन्धोदक लगावें । हाथ धोकर अष्ट द्रव्य से निम्न प्रकार पूजन करें । मुनिराज के ठहरते ही जयकार बन्द होकर शांति बनी रहे (पूजा आगे है) पूजन करके नमस्कार करें, फिर सिद्धभक्ति पढ़े । भगवान् को आचार्य उठाकर दूसरे उच्च आसन पर विराजमान करें तब राजा सोम इक्षुरस की धारा भगवान् के हाथ के पास क्षेपण करें और आहार-दान की क्रिया की जावे । मुनिराज के मुख या हाथ पर आहार न रखकर पास ही दिखलाते हुए क्रिया की जावे । आहार दान के समय पूजा जयजय तीर्थंकर गुरु महान्, हम देख हुए कृत कृत्य प्राण ॥ महिमा तुम्हरी वरणी न जाय, तुम शिव मारग साधत स्वभाव ॥ जय धन्य धन्य ऋषभेश आज, तुम दर्शन से सब पाप भाज ॥ हम हुए सु पावन गात्र आज, जय धन्य धन्य तप सार साज ॥ तुम छोड़ परिग्रह भार नाथ, लीनो चरित्र तप ज्ञान साथ ॥ निज आतम ध्यान प्रकाशकार, तुम कर्म जलावन वृत्तिधार || जय सर्व जीव रक्षक कृपाल, जय धारत रत्नत्रय विशाल ॥ जय मैनी आतम मननकार, जगजीव उद्धारण मार्ग धार ॥ हम गृह पवित्र तुम चरण पाय, हम मन पवित्र तुम ध्याय ध्याय ॥ हम भये कृतारथ आप पाय, तुम चरण सेवने चित्त बढ़ाए || ॐ ह्रीं श्री ऋषभनाथ मुनिराज अत्र अवतर- अवतर । ॐ ह्रीं श्री ऋषभनाथ मुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ॐ ह्रीं श्री ऋषभनाथ मुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् । १८८ ] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only [ प्रतिष्ठा प्रदीप ] www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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