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________________ २४ भगवान् की तपकल्याणक की पूजा (हिन्दी) गीता छंद श्री रिषभदेव सु आदि जिन श्रीवर्द्धमान जु अंत हैं । वंदहुं चरण वारिज तिन्होंके जपत तिनको संत हैं । करके तपस्या साधु व्रत ले मुक्ति के स्वामी भए । तिन तपकल्याणक यजनको हम द्रव्य आठों हैं लए ॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि वर्द्धमानजिना अनावतरतावतरत संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि वर्द्धमानजिना अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि वर्द्धमानजिना अन्न मम सन्निहिता भवत भवत वषट् । छंद चाली शुचि गंगाजल भर झारी, रुज जन्म मरण क्षयकारी । तपसी जिन चोविस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए । ॐ ह्रीं ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा। शीतल चंदन घसि लाऊं, भव का आताप शमाऊं । तपसी जिन चोविस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए । ॐ ह्रीं ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यो चंदन निर्दपामीति स्वाहा । अक्षत ले शशि दुतिकारी, अक्षयगुण के करतारी । तपसी जिन चोविस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए । ॐ ह्रीं ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यो अक्षतं जलं निर्वपामीति स्वाहा । बहु फूल सुवर्ण चुनाऊं, निज काम व्यथा हटवाऊं । तपसी जिन चोविस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए । ॐ ह्रीं ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । चरु ताजे स्वच्छ बनाऊं, निज रोग क्षुधा मिटवाऊं । तपसी जिन चोविस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए । ॐ हीं मषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यो चरु निर्वपामीति स्वाहा। दीपक ले तम हरतारा, निज ज्ञानप्रभा विस्तारा । तपसी जिन चोविस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए ॥ ॐ ह्रीं मषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूपायन धूप खिवाऊं, जिन आठों कर्म जलाऊं । ___तपसी जिन चोविस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए । ॐ ह्रीं ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा । १८४] [ प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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