________________
नोटः- भगवान् के लिए 'अहं सर्व सावद्य विरतोऽस्मि' यह कह कर अर्हत - सिद्ध भक्ति का पाठ करें तप कल्याणक की यथाविधि पूजा करें।
चार दीपक प्रज्ज्वलित कर यह घोषणा करें कि भगवान् को मन:पर्ययज्ञान प्राप्त हो गया है । ॐ ह्रीं अर्हं णमो असिआउंसा मन:पर्ययज्ञान प्राप्ताय नमः । ( जयसेन प्रतिष्ठा पाठ, पृष्ठ २७५) नोट- यहाँ यदि आगे लिखी पूजा करना हो तो कर लें पश्चात् परदा डाल दें और सूचित कर देवें कि भगवान् ध्यान में लीन हैं; इस अवसर पर वैराग्य पर प्रवचन होता रहे और किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिमा छिपाकर बाहर ले जावें ओर मण्डप में विराजमान कर देवें । थोड़ी देर बाद परदा हटाकर यह घोषणा कर देवें कि भगवान् विहार कर गये। पीछी - कमण्डलु भी वहाँ से हटा लें । तीर्थंकर के पास कमण्डलु नहीं रहता, क्योंकि उन्हें मल-मूत्र की बाधा नहीं होती । जीव बाधा नहीं होने से तीर्थंकर के पास पीछी भी नहीं रहती । (जयसेन प्रतिष्ठा पाठ, पृष्ठ २७१)
१८२ ]
किन्तु आहार के समय पीछी - कमण्डलु साथ में ले जाना चाहिये । पंचकल्याणकारोपण (अथवा अर्हन्तभक्ति पाठ) यद्गर्भावतरे गृहे जनयितुः प्रागेव शक्राज्ञया, षण्मासान्नव चानु रत्नकनकं वित्तेश्वरो वर्षति । भात्युर्वी मणिगर्भिणी सुरसरिन्नीरोक्षिता षोडश, स्वप्नेक्षामुदितां भजंति जननीं श्रीदिक्कुमारयोसि सः ॥ प्रच्छन्नं जननीमुपास्य शयनादानीय शच्यार्पितं, यं तत्वास चतुर्णिकायविबुधः श्रीमत्करीन्द्रश्रितः । सौधर्मोक निवेशितं सुरगिरिं नीत्वाभिषिच्यांवया, संयोज्योपचरत्यजस्रमसमैर्भोगै स भास्येष नः 11 किं कुर्वाण सुरेन्द्ररुद्र विषयानन्दा द्विरक्तस्तुतो, यो लौकान्तिक नाकिभिः शिविकया निष्क्रम्य गेहान्महैः ॥ दिव्यैः सिद्धनतीद्वयावनतरुं पूत्वा परा दीक्षया, भुंक्ते शुद्ध निजात्मसंविदमृतं स त्वं स्फुरस्वेष नः || सम्यग्दृष्टि कृशाकृशव्रत शुभोत्साहेषु तिष्ठन् क्वचित् । धर्मध्यानबलादयत्नगलितामायुस्त्रयः सप्त यः 11 दृष्टि प्रप्रकृतीसमातपचतुर्जाति त्रि निद्रा द्विधा । श्वभ्रस्थावर सूक्ष्मतिर्यगुभयोद्योतान्कषायाष्टकम् 11 क्लैव्यं स्त्रैणमथादिमेन नव मे हास्यादिषट्कं नृतां । क्षिप्त्वोदीचि पृथक्रुधादि दशमे लोभं कषायाष्टकं ॥ निद्रासप्रचलामुपान्त्यसमये दृग्धीघ्न विघ्नाश्चतुर्द्धिः पंच क्षिपते परेण चरमे शुक्लेन सोर्हन्नसि ॥
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
www.jainelibrary.org