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भगवान् की पालकी इन्द्रों द्वारा लाना, उसमें विराजमान करते समय ४ भूमि गोचरी राजा व ४ विद्याधर राजाओं का क्रमशः उठाना । देवों और मनुष्यों से पालकी उठाते समय चर्चा । मनुष्य पहले इसलिये उठाते हैं कि वे भगवान् के साथ ही तप के अधिकारी हैं, जबकि देवता नहीं। पीछे पालकी देव उठावें ।
दीक्षावृक्ष- वट, सप्तच्छद, साल, प्रियंगु, श्रीखंड, नाग, पलाश, तेन्दु, पाटल, जम्बु, पिप्पल, दधिपर्ण, नंदि, तिलक, आम्र, अशोक, चंपा, मौलसिरी, बांस, धव इनमें से कोई भी हो।
तपोवन की क्रियायें नोट- ऊपर चंदेवा, नीचे तख्त आदि जमा देवें।
'ॐ नीरजसे नमः' इस मन्त्र से भूमि शुद्ध करें। ॐ हीं णमो अरहंताणं वृषभजिनस्थ वटाख्य जिनदीक्षावृक्षोऽत्रावतरावतर संदौषट् ।
(दीक्षा वृक्ष पर पुष्पांजलिः) उदङमुखः पूर्वमुखोऽथवा यो । निविष्टवान् पूतशिलोपरिष्टात् ।।
प्रवृज्यया निर्वृति साधनोत्कः । स एव देवो जिन बिंब एषः ।। ॐ ही धर्मतीर्थाधिनाथ भगवन्त्रिह सुरेन्द्र विरचित चन्द्रकान्त शिलातले तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । (शिला पर भगवान् को पूर्व या उत्तरमुख विराजमान करें)
(आचार्य व श्रुत भक्ति-पाठ करें) ॐ नमो भगवतेऽर्हते सामायिक प्रपन्नाय वस्त्राभूषणमपनयामि ।
(वस्त्राभूषण उतार कर थाली में रखें) “ॐ ह्रीं श्री क्लीं हां ही हूं हौं हः अ सि आ उ सा नमः" इस मन्त्र से भगवान् के मस्तक मे केशर का लेप कर उसमें लोंग लगा देवें फिर 'नमः सिद्धेभ्यः' कह कर केशरूप लोंगों को निकालकर एक डिब्बी में रख लेवें । आचार्य साधुत्व की दृष्टि से पास में पीछी कमण्डलु रख देवें।
मन्त्र की आवश्यकता नहीं है (यहाँ केशलोंच क्रिया तक दर्शकों के समक्ष क्रिया करें) केशा वासांसि भूषाच्च पिटिकायां निधाय च ।
इन्द्रः स्वस्वस्थापनादि क्षेत्रे योग्यं समर्पयेत् ।। इस श्लोक के अनुसार इन्द्र भगवान् के वस्त्राभूषणों को पेटी में रखकर अपने स्थान को ले जावें ।
यस्यप्रभोः केशकलापमिन्द्रः, सम्पूज्य निक्षिप्य च रत्ना पात्रं ।
निक्षेपयामास पयः पयोधौ, स एव देवो जिनबिम्ब एषः । इसको पढ़कर भगवान् और केशों की पेटी पर पुष्पक्षेपण करें। और फिर केशों को जुलूसपूर्वक क्षीरसागर (किसी नदी या कूप) में क्षेपें।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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