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तुम्हारो जनम तीन भू दुःख निवारी, महामोह मिथ्यात हियसे निकारी । तुम्ही तीन बोधं धरे जन्मही से, तुम्हें दर्शनं क्षायिकं जन्मही से ||३|| तुम्हें आत्मदर्शन रहे जन्मही से, तुम्हें तत्त्व बोधं रहे जन्मही से । तुम्हारा महा पुण्य आश्चर्यकारी, स महिमा तुम्हारी सदा पापहारी ||४|| करा शुभ न्हवन क्षीरसागर सु जलसे, मिटी कालिमा पापकी अंग परसे। हुआ जन्म सफल करी सेव देवा, लहूं पद तुम्हारा इसी हेतु सेवा ||५||
. दोहा श्रीजिन चौविस जन्मकी, महिमा उरमें धार ।
पूज करत पातक टलें, बढ़े, ज्ञान अधिकार || ॐ हीं चतुर्विंशतिजिनेभ्यो जहमकल्याणकप्राप्तेश्यो महाऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा ।
मन्त्र संस्कार ॐ ह्रीं इक्ष्वाकुकुले नाभिभूपतेर्मरुदेव्यामुत्पन्नस्यादिदेवपुरुषस्य वृषभदेव स्वामिनोऽत्र बिंबे वृषभांकितत्वात् तद्गुण स्थापनं तेजोमयं करोमि स्वाहा । ॐ अयं महानुभावः परमेश्वरो वृषभेश्वरो भवतु।
वंश, जठमनगरी आदि का नाम भी उच्चारण करें। नोट- इसी प्रकार उक्त व नीचे के मन्त्र से अन्य प्रतिष्ठेय प्रतिमाओं का उनके प्रतिष्ठाकारकों द्वारा स्पर्श कराते हुए उक्त प्रकार नामादि मन्त्रोच्चारण कराया जावे।
(जयसेन प्रतिष्ठा पाठ, पृष्ठ २५४) ॐ वृषभादिदिव्यदेहाय सद्योजाताय महाप्रज्ञाय अनंतचतुष्ट्ययाय परमसुखप्रतिष्ठिताय निर्मलाय स्वयंभुवे अजरामरपदप्राप्ताय चतुर्मुखपरमेष्ठिनेऽर्हते त्रैलोक्यनाथाय त्रैलोक्यपूज्याय अष्टदिव्यनागप्रपूजिताय देवाधिदेवाय परमार्थ संनिहितोऽसि स्वाहा।
(पुष्पक्षेपण व अंग स्पर्श करें) १. ॐ अस्मिन् जिन विवे निःस्वेदत्व गुणोविलसतु स्वाहा । २. ॐ अस्मिन् जिने विवे क्षीरवर्णरुधिरत्वगुणो विलसतु स्वाहा । ३. ॐ अस्मिन् जिन विवे मलरहितत्व गुणे विलसतु स्वाहा । ४. ॐ अस्मिन् जिन विवे समचतुरस्रसंस्थान गुणो विलसतु स्वाहा। ५. ॐ अस्मिन् जिन विवे वज्रवृषभनाराच संहनन गुणो विलसतु स्वाहा । ६. ॐ अस्मिन् जिन विवे अद्भुत रूप गुणो विलसतु स्वाहा । ७. ॐ अस्मिन् जिन विवे सुगन्ध शरीर गुणो विलसतु स्वाहा। ८. ॐ अस्मिन् जिन विवे अष्टोत्तर सहस्र लक्षण व्यंजनत्व गुणो विलसतु स्वाहा । ९. ॐ अस्मिन् जिन विवे अतुलबलवीर्यत्व गुणो विलसतु स्वाहा ।
१०. ॐ अस्मिन् जिन विवे हित मित प्रिय वचन गुणो विलसतु स्वाहा । नोट- पुष्प क्षेपण द्वारा अन्य प्रतिमाओं पर भी उक्त विधि करें। इसके पश्चात् शाम को ४ बजे से मंडप में झूला का कार्यक्रम किया जावे।
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[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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