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________________ वदि चौदस जेठ सुहानी, ऐरादेवी गुण खानी । श्रीशांति जने सुख पाए, हम पूजत प्रेम बढ़ाए ||१६|| ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा चतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनेदाय जठमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । पडिवा वैशाख सुदीकी, लक्ष्मीमति माता नीकी । श्रीकुन्थुनाथ उपजाए, पूजत हम अर्घ्य चढ़ाए ॥१७|| ॐ ही वैशाखशुक्ला एकम् श्रीकुन्थुनाथ जिनेन्द्राय जठमकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । अगहन सुदि चौदस मानी, मित्रादेवी हरषानी । अर तीर्थंकर उपजाए, पूजे हम मन बच काए ॥१८॥ ॐ हीं अगहनशुक्ला चतुर्दश्यां श्रीअरतीर्थंकराय जहमकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा। अगहन सुदि ग्यारस आए, श्रीमल्लिनाथ उपजाए । है मात प्रजापति प्यारी, पूजत अघ विनशै भारी ||१९|| ॐ हीं अगहनशुक्ला एकादश्यां श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय जठमकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्व० स्वाहा । दशमी वैशाख वदी की, श्यामा माता जिवजी की । मुनिसुव्रत जिन उपजाए, हम पूजत पाप नशाए ॥२०।। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा दशम्यां श्रीमुनिसुव्रतजिनेदाय जठमकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा | दशमी आषाढ़ वदीकी, विपुला माता जिनजीकी । नमि तीर्थंकर उपजाए, पूजत हम ध्यान लगाए ॥२१॥ ॐ ह्रीं आषाढकृष्णा दशम्यां श्रीनमिजिनेदाय जदमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । श्रावण शुक्ला छठि जानो, उपजे जिननेमि प्रमाणो । जननी सु शिवा जिनजीकी, हम पूजत हैं थल शिवकी ॥२२॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ला षष्ठयां श्रीनेमिनाथजिनेदाय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । वदि पूष चतुर्दशि जानी, वामादेवी हरषानी । जिन पार्श्व जने गुणखानी, पूजें हम नाग निशानी ॥२३।। ॐ ही पौषकृष्णा चतुर्दश्यां श्रीपार्वजिनेन्द्राय जटमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । शुभ चैत्र त्रयोदश शुक्ला, माता गुणखानी त्रिशला । श्री वर्द्धमान जिन जाए, हम पूजत विघ्न नशाए ॥२४॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला त्रयोदश्यां श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । भुजंग प्रयात नमो जै नमो जै जिनेशा, तुम्ही ज्ञान सूरज तुम्ही शिव प्रवेशा । तुम्हें दर्श करके महामोह भाजे, तुम्हें पर्श करके सकल ताप भाजे ॥१॥ तुम्हें ध्यानमें धारते जो गिराई, परम आत्म अनुभव छटा सार पाई । तुम्हें पूजते नित्य इन्द्रादि देवा, लहैं पुण्य अद्भूत परम ज्ञान मेवा ॥२॥ [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [१७७ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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