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________________ कार्तिक वदि तेरसि जानो, श्री पद्मप्रभू उपजानो । है मात सुसीमा ताकी, पूजूं ले रुचि समताकी ||६|| ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णा त्रयोदश्यां श्रीपदाप्रभुजिनेन्द्राय जहमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। शुचि द्वादश जेठ सुदीकी, पृथ्वी माता जिनजीकी । जिननाथ सुपारश जाए, पूजूं हम मन हरषाए ॥७|| ॐ हीं ज्येष्ठ शुक्ला द्वादश्यां श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जटमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपानीति स्वाहा । शुभ पूस वदी ग्यारसको, है जन्म चन्द्रप्रभु जिनको । धन्य मात सुलखनादेवी, पूजूं जिनको मुनिसेवी ॥८॥ ॐ ही पौष एकादश्यां श्री चंद्रप्रभजिनेन्दाय जठमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । अगहन सुदि एकम जाना, जिन मात रमा सुख खाना । श्री पुष्पदंत उपजाए, पूजत हूं ध्यान लगाए ॥९।। ॐ ह्रीं अगहन शुक्ला एकम् श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय जदमकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । द्वादश वदि माघ सुहानी, नंदा माता सुखदानी । श्री शीतल जिन उपजाए, हम पूजत विघ्न नशाए ||१०|| ॐ ह्रीं माघकृष्णा द्वादश्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । ____फागुन वदि ग्यारस नीकी, जननी विमला जिन जीकी । श्रेयांसनाथ उपजाए, हम पूजत ही सुख पाए ||११|| ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा दशम्यां श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । वदि फाल्गुन चौदसि जाना, विजया माता सुख खाना । श्री वासुपूज्य भगवाना, पूजूं पाऊं निज ज्ञाना ||१२।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्ण चतुर्दश्यां श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । शुभ द्वादश माघ वदीकी, श्यामा माता जिनजीकी । श्रीविमलनाथ उपजाए पूजत हम ध्यान लगाए ।।१३।। ॐ ह्रीं माघकृष्णा द्वादश्यां श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय जहमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । द्वादशि वदि जेठ प्रमाणी, सुरजामाता सुखदानी । जिननाथ अनन्त सुजाए, पूजत हम नाहिं अघाए ||१४|| ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा द्वादश्यां श्रीअनन्तनाथ जिनेन्द्राय जन्मकल्याणक प्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहप तेरसि सुदि माघ महीना, श्रीधर्मनाथ अघ छीना । माता सुव्रता उपजाये, हम पूजत ज्ञान बढ़ाए ॥१५|| ॐ हीं माघशुक्ला त्रयोदश्यां श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय जटमकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । १७६] [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010 05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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