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राज्याभिषेक
(राजमहल पद) (रात्रि को) विधि नायक प्रतिमा पहले टेबल पर ऊँची रखें । आजू-बाजू दो चौबदार | सामने टेबल पर जल कलश। इन्द्र वस्त्राभूषण उतारकर अभिषेक करें । पास ही सिंहासन पर विराजमान कर नये वस्त्राभूषण व मुकुट लगाकर कहें
सर्वराज महाराज के, पालक दीनदयाल । तुमही हो जगपूज्य प्रभु, वृषभदेव भगवान् ।।
नृत्य होवे । राजाओं द्वारा क्रम-क्रम से भेंट कराई जावे । गौड़, विदर्भ, केरल, आन्ध्र, पुन्नार, सौराष्ट्र, किरात, कौशल, कामरूप, मगध, कुरुजांगल, मल्ल, दशार्ण, चौल, अंग, बंग, कलिंग, कर्णाटक, पांड्य, सिंधु, काशी, कच्छ, गुर्जर, महाराष्ट्र पांचाल, मालव, राजस्थान, मध्यप्रदेश, असम, ब्रह्म, नेपाल, भूटान, तिब्बत, चीन, फ्रांस, ग्रीस, अरब, गांधार, मिस्र आदि।
हरिवंश के नायक हरि, कुरुवंश के नायक सोमप्रभ, नाथवंश के अकंपन और उग्रवंश के काश्यप को नायक स्थापित करें। भरत-बाहुबली भी बैठा सकते हैं। राजनीति का उपदेश हो । योग्यता देखकर क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण की स्थापना ।
वैराग्य का प्रसंग ऊँची टेबल पर विधिनायक प्रतिमा विराजमान करें । सामने नीलांजना का नृत्य होते हुए उसका विलय और दूसरी का वहाँ नृत्य करते हुए बताना । भगवान् का वैराग्य, लौकांतिक देवों का आगमन और उनके द्वारा वैराग्य की सराहना । लौकांतिक-आठ ब्रह्मचारी या अविवाहित नवयुवक मंडप के बाहर से आकर बारह-भावना पढ़ें।
स्वामिन्नद्य जगत्त्रये प्रसरतां मांगल्यमाला यतः । सर्वेभ्यः सुकृतं भविष्यति भवत्तीर्थामृतांभोधरात् ।। घोरापज्ज्वलनापनोदनमितो भव्यात्मनां जायतां ।
वैराग्यावगमस्त्वया परिचितस्तस्मै नमस्ते पुनः ॥ के वा वयं त्वदुपदेशविधानदक्षाः । स्वायंभवस्य सकलागमपूतदृष्टेः ॥ आत्मैव केवलमथो प्रतिबुद्धमार्गं । नीतः स्वयं न खलु भव्यगणोऽपि तात ।।
अयं पितेयं जननी तवेति । लोका मुधार्थं व्यवहारयन्ति ॥ विश्वेशिता विश्वपितामहस्त्वं । मातासि सर्वप्रतिपालनेच्छुः ॥ अवाप्त संसारतटः स्वलब्ध्या । निमित्तमन्यत्समुपस्थितोऽसि ॥
स्वयं प्रबुद्धः प्रभविष्णुरीशः । कदापि नास्मत्स्तवनेन बुद्धः ॥ [प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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