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________________ महेन्द्र इन्द्राणी- उनके शरीर का रुधिर भी सफेद होता है और शरीर का आकार समचतुरस्र संस्थान का होता है । ५. ब्रह्म इन्द्र- भगवान् के शरीर का संहनन वज्रवृषभ-नाराच होता है अर्थात् उनके शरीर की हड्डियाँ वज्रमय और वेष्टन व कीली भी वज्र सहित होती है । ब्रह्म इन्द्राणी- परन्तु हम देवों के शरीर में रस, रक्त, हड्डी, मांस आदि सात धातु न होने से संहनन नहीं होते । ६. लांव इन्द्र- हम लोग वैक्रियिक शरीर वाले हैं। हमारा बिना धातु का शरीर तो होता ही है, परन्तु हम आहार भी नहीं करते । इन्द्राणी - हमें भूख अवश्य लगती है परन्तु इच्छा होते ही तत्काल कंठ तृप्ति हो जाती है । अमृत झर जाता है और ७. महाशुक्र इन्द्र- भगवान् का रूप अनुपम होता है जिसको देखने के लिए हम तरसते हैं। इन्द्राणी - भगवान् के शरीर में सुगंध आती है और १००८ शुभ लक्षण होते हैं । ८. सहस्रार इन्द्र- हमें मिलकर जन्माभिषेक के लिए मध्यलोक जाना है, वहाँ महारानी मरुदेवी के पास से ऋषभदेव बालक को लाना होगा । इन्द्राणी - हम इन्द्राणियों में से प्रथम इन्द्राणी ही गर्भगृह में जाकर सोती हुई माता के पास से ऋषभदेव बालक को ला सकती हैं । ९. आनत इन्द्र- मेरु पर्वत की पूर्व दिशा के पांडुक वन की पांडुक शिला में भगवान् को विराजमान कर १००८ कलशों से अभिषेक होगा । इन्द्राणी - जन्माभिषेक इन्द्रगण पाँचवें समुद्र क्षीरसागर के जल से करते हैं । १०. प्राणत इन्द्र- अढ़ाई द्वीप के आगे मनुष्य नहीं जा सकते इसलिये उस समुद्र का जल इन्द्र ही लाते हैं । इन्द्राणी - हम इन्द्र-इन्द्राणी ही आठवें द्वीप नंदीश्वर में जाकर वहाँ ५२ अकृत्रिम चैत्यालय की पूजा करते हैं । ११. आरण इन्द्र- भगवान् का जन्म कल्याणक मनाने के लिए ऐरावत हाथी को लेकर हम जावेंगे। वह एक लाख योजन का है। उसकी रचना अपूर्व है । इन्द्राणी - देवों में इन्द्र, सामानिक आदि दश प्रकार की कल्पना होती है उनमें आभियोग्य जाति के देवों में ऐरावत है, जो ऐरावत हाथी बनकर सवारी के काम आता है । १२. अच्युत इन्द्र- यह सब पुण्य के वैभव की चर्चा है जो हम कर रहे हैं, परन्तु यह सब जिसके बल पर है उस सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र के महत्त्व को भी जानना चाहिये । १७० ] [ प्रतिष्ठा-प्रदीप ] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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