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________________ शुचि गर्भ स्थिति मह दीप्तिवान, त्रय ज्ञान सु भूषत गुण निधान । तन वज्रवृषभनाराच धरन, सुन्दर सरूप दुति सरम करन ||५|| शत आठ सु लक्षन रचत तास, नौ सै विजन सोहत विख्यात । सबके प्रियतम भविजन सु मात, जिनकी महिमा जग है विख्यात ।।६।। दरपन कोई इक लिये हाथ, कोई धर्म-कथा कहि नमत माथ । कोई झारी कोइक पहुपमाल, कोई गहत बीजना नमत भाल ||७|| बूझत केई मिलकर गूढ़ अर्थ, तिन ज्वाब कहत जननी समर्थ । परिजन पुरजन सुर हरष गात, जिन पुण्य महातम कहो न जात ||८|| सोरठा इहिविधि गर्भकल्याणको, को कवि वरनन करि सके । जाको पढ़त सुजान, विघन-हरन मंगल करन ॥९।। गीतिका छंद हरषाय गाय जिनेन्द्र पूजत, पंचकल्याणक भले । बहु पुण्य की बढ़वार जाके, विघन जात टले गले ।। जाके सुफल कर देह सुन्दर, रोग शोक न आवहीं । धन धान्य पुत्र सुरेन्द्र सम्पति, राजा निज सुख पावहीं ।।१०।। इत्याशीर्वादः (पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्।) भगवान् आदिनाथ के पूर्व भव नोट :- चित्र तैयार करवा कर दिखलाये जावें । चाहें तो रात्रि को सभा में दिखलायें । १. जयवर्मा (राजपुत्र)- मुनि दीक्षा लेकर तप करते समय सर्प ने डस लिया । शांत भाव से प्राण छोड़े। सम्यक्त्व की ओर पग बढ़ाया। २. महाबल नरेश- चार मंत्रियों से चर्चा करते हुए स्वयंबुद्ध मंत्री द्वारा संबोधित होकर मुनिदीक्षा । ३. ललितांग देव- देवांगनाओं के साथ भोग भोगते हुए आत्मदृष्टि स्वयंप्रभा देवांगना की विरक्ति । ४. राजावज्र जंघ और श्रीमती- स्वयंप्रभा स्वर्ग से चयकर श्रीमती हुई । ललितांग वज्रजंघ हुआ। मुनिदान दिया। ५. उत्तम भोग भूमि में युगल दंपत्ति- स्वयंबुद्ध मंत्री प्रीतंकर मुनि होकर चारण मुनि के साथ, इस दम्पत्ति युगल को संबोधा। ६. श्रीधरदेव और उसके द्वारा शतमति मंत्री (नरक में उत्पन्न) को उपदेश दना । १६६] प्रतिष्ठा-प्रदीप Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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