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________________ श्रीधरदेव (वज्रजंघ का जीव) दूसरे स्वर्ग में देव श्रीमती का जीव वहीं स्वयंप्रभ देव हुआ, दोनों धर चर्चा करते हैं। ७. सुबिधि राजपुत्र धर्माराधन करते हुए- श्रीधरदेव सुसीमा नगर का राजपुत्र श्रीमती का जीव (स्वयंप्रभ देव) उन्हीं के केशव नामक पुत्र ने श्रावक व्रत व मुनिव्रत लेकर सल्लेखना की। ८. अच्युत स्वर्ग में इन्द्र प्रतीन्द्र- वज्रजंघ का जीव इन्द्र-इन्द्राणी के साथ भोग भोगते हुए श्रीमत का जीव (केशव) वहीं प्रतीन्द्र । दोनों धर्म चर्चा करते हुए। ९. वज्रनाभि चक्रवर्ती और धनदेव गृहपति-वज्रजंघ का जीव १६वें स्वर्ग से चयकर विदेह क्षेत्र में वज्रसेन राजा व श्रीकांता रानी का पुत्र वज्रनाभि, श्रीमती का जीव गृहपति धनदेव हुआ । वज्रनाभि अपने भाइयों के साथ मुनि हुए। वज्रसेन तीर्थंकर के पादमूल में सोलह कारण भावना भायी। १०. सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र- वज्रजंघ का जीव अहमिन्द्र हुआ । अन्य अहमिन्द्रों के साथ चच करते हुए। ११. ऋषभदेव तीर्थंकर (वज्रजंघ का जीव हुआ)। जन्म कल्याणक नोट- पर्दा खोलने व जन्म बताने के पूर्व की क्रियायें। मंजूषा में से बाहर निकालकर विधिनायक के वस्त्र दूर करके चौकी पर विराजमान करना, नीचे वर्धमान यंत्र स्थापित करना । इसी प्रकार समस्त प्रतिमाओं के वस्त्र दूर करना । इस कार्य के लिए निम्नलिखित मन्त्र शुभे विलग्ने सुनवांके वा, जिनेन्द्र जन्म प्रबभूव यद्वत् । मंजूषिकांतर्गतमाशु बिंबम्, निष्कासयेदार्यवर : कराभ्यां । प्रतिमा को मंजूषा से बाहर निकाल लैवें देवानां नमयन् शिरांसि सुमनांस्याकंपयन्नासना न्यभ्रं निर्मलयन् सदिक्सुमनसो देवद्रुमैवर्षयन् ॥ जन्यन्शीत सुगंधि मन्दमनिलं यः सिंधु मुढेलयन् । आधुन्वन् स धराधरं च निरगात् कुक्षेः शुभेक्षैष सः ।। ॐ ह्रीं त्रैलोक्योद्धरण धीर जिनेन्द्रं भदासने उपवेशयामि स्वाहा। (प्रतिमाओं के वस्त्र निकाल लेवें) ॐ ह्रीं अहँ नमः परमेष्ठिभ्यः स्वाहा। ॐ ह्रीं अहँ नमः परमात्मकेभ्यः स्वाहा। ॐ ह्रीं अहँ नमोऽनादि निधनेभ्यः स्वाहा । ॐ ह्रीं अहँ नमो नृसुरासुर पूजितेभ्यः स्वाहा । [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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